अन्नाभाऊ साठे पर निबंध – Essay on Annabhau Sathe in Hindi

एक ऐसा विषय जिसका कोई अंत ना हो उसे हम साहित्य कह सकते हैं क्योंकि, साहित्य हर भाषा के अनुसार बटा हुआ है और इस कारण यह क्षेत्र काफी बड़ा है , भारत विभिता में एकता के लिए जानी जाती है और यह सिर्फ धर्म तक नहीं लागू होता है ,बल्कि यह साहित्य के क्षेत्र में भी लागू होता है ।

अन्नाभाऊ साठे पर निबंध – Long and Short Essay on Annabhau Sathe in Hindi

हर एक साहित्यकार अपने जीवन काल में कई रचनाएं करता है और वह उन रचनाओं के कारण मशहूर हो जाता है। हर एक रचनाएं और हर एक साहित्यकार अपने आसपास के जिंदगी में या अपने आसपास के समाज से बेहद प्रभावित होता है और इसी कारणवश उनकी रचनाएं लोगों के जिंदगी पर प्रभाव डालती हैं, जब क किसी रचना को लोग पढ़ते हैं तो मंत्रमुग्ध हो जाते हैं क्योंकि वह रचनाएं उनके जिंदगी से कहीं ना कहीं जुड़ी होती है और वह बात पाठक के दिल को छू जाती है।

अंग्रेजी भाषा और हिंदी भाषा में कई दिग्गजों साहित्यकार हैं जिनको हमारे स्कूल और कॉलेज में कई विषय के अंतर्गत पढ़ाया जाता है, कवि, साहित्यकार के जीवन से लोगों को परिचित कराया जाता है तो कभी उनके प्रमुख रचनाओं के माध्यम से लोगों को विभिन्न प्रकार का संदेश दिया जाता है । आपने कई साहित्यकार का नाम सुना होगा और उनकी रचनाओं से भली भांति परिचित होंगे , लेकिन कुछ शब्द ऐसे हैं और कुछ नाम ऐसे होते हैं जिनको पढ़ते या सुनते हैं आपके मन में किसी एक इंसान की छवि जरूर आती है ।

” अन्ना ” यह शब्द पढ़ते ही आपके मन में  भारत के मशहूर अन्ना हजारे की छवि जरूर आई होगी अधिकतम शब्द सुनने पर लोग अन्ना हजारे या मराठी लोगों के बारे में बताते हैं । जैसा कि हमने आपको बताया कि विभिनता में एकता भारत में धर्म से आगे आकर साहित्य के क्षेत्र में भी काफी मशहूर है और यह शब्द अन्ना भी हमारे साहित्य का एक सुनहरा शब्द है,

क्योंकि आज हम मशहूर मराठी साहित्यकार “अन्नाभाऊ साठे ” के बारे में आपको बताएंगे । हर भाषा के साथ उसके साहित्यकार और उनसे जुड़ी हुई कई पहलू होती है ठीक उसी तरह साहित्यकार “अन्नाभाऊ साठे”के जिंदगी और साहित्य से जुड़े कई पहलुओं को आज इस ब्लॉग के जरिए बताया जाएगा ।

हर एक व्यक्ति अपनी जिंदगी में कई काम करता है एक लेखक सिर्फ लेखक नहीं होता बल्कि वह अपनी आम जिंदगी में कई बार क्रांतिकारी तो कई बार कलाकार भी होता है ठीक उसी तरह हमारे महान साहित्यकार ” अन्नाभाऊ साठे” सिर्फ लेखक ही नहीं बल्कि क्रांतिकारी, कलाकार, समाज सुधारक, और साहित्यकार थे जिन्होंने अपने कड़ी मेहनत से कई असंभव बदलाव को संभव किया और इतिहास के सुनहरे पन्नों में इन्हें आज भी पूरे इज्जत से याद किया जाता है ।

कौन है ” अन्नाभाऊ साठे ” ?

मशहूर मराठी साहित्यकार और कला जगत में विख्यात कलाकार अन्नाभाऊ साठे का जन्म 1 अगस्त 1920 को महाराष्ट्र के सांगली जिले की वाल्वा तहसील, वाटेगाव के मांगबाड़ा में हुआ था । इनकी माता का नाम बालू भाई था और इनके पिता का नाम भाऊराव था, इनके माता-पिता उन्हें प्यार से बचपन में तुकाराम कहकर बुलाया करते थे। गौर करने की बात यह है कि विख्यात साहित्यकार एक अछूत जाति और देश की सबसे विभिन्न जातियों से जुड़े हुए थे ,यह मांग जाति के थे ।

वह जाती जिसकी उस वक्त ना कोई अस्थाई धंधा हुआ करती थी और ना ही उनके भरण-पोषण का कोई निश्चित तरीका था , अपना जीवन चलाने हैं और पेट भरने के लिए एक जाति के लोग उस वक्त शादी व्याह और पर्व के दौरान ढोल बाजा बजाया करते थे, नाच गाना करते थे, रस्सी बनाने का काम और उसे बेचा करते थे और वहां से मिले पैसों से अपना पेट भरते थे और अपनी गृहस्थी चलाया करते थे , और जब यह काम ना मिले तो मजदूरी कर कर अपना जीवन यापन करते थे ।

अछूत जाति के होने के कारण इन लोगों को गांव में रहना बना था इसलिए यह लोग गांव से बाहर रहा करते थे और यह इनके लिए सबसे बड़ी परेशानी बनी हुई थी क्योंकि जब भी कोई दुर्घटना या अपराध होता था तो पूरा शक मांगबाड़ा पर जाता था, मानव-मात्र के अधिकारों की सुरक्षा का दावा करने वाली औपनिवेशिक सरकार ने पूरी ‘मांग’ जाति को ‘क्रिमिनल ट्राइव एक्टᅳ1871’ के अंतर्गत अपराधी घोषित किया हुआ थअन्नाभाऊ साठे एक साहित्यकार और क्रांतिकारी

भाऊराव यानी कि अन्नाभाऊ साठे के पिता एक अंग्रेज के घर माली का काम करते थे, और उन दिनों क्रांतिकारी गतिविधियों में काफी तेजी हो गई थी जिसके कारण अंग्रेजों का भारत के ऊपर शक बढ़ता जा रहा था और इसी कारणवश अन्नाभाऊ के पिता अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे और 1930 का आर्थिक मंदी दोनों इस परिवार के लिए बड़ी मुसीबत बनकर सामने आया ,

अपने गांव वापस लौटने पर वहां जिंदगी बिताना मुश्किल हो गया था क्योंकि उस साल पूरा महाराष्ट्र सूखा का प्रकोप झेल रहा था और यह अकाल अन्नाभाऊ साठे के परिवार की जिंदगी पर बहुत बड़ी मुसीबत बन गई जिसके बाद उनके पिता ने यह फैसला किया कि वह रोजगार की तलाश में मुंबई जाएंगे।

शहर जाने का किराया ना होने के बाद पूरा परिवार पैदल यात्रा का फैसला करके मुंबई की ओर रवाना हुआ । उस वक्त अन्नाभाऊ महज तो 11 साल के थे लेकिन फिर भी उन्हें मुंबई में काम की कमी नहीं मिली वह बर्तन धोने से लेकर वेटर तक का काम किए, तो कभी काम ना मिलने पर लोगों की बूट पॉलिश किया करते थे उस दौरान अन्नाभऊ को फिल्म देखने का शौक था जिसके कारण वह जो भी कमाते थे उसका बड़ा हिस्सा फिल्मका टिकट खरीदने पर खर्च करते थे।

इस दौरान वह धीरे-धीरे पढ़ना लिखना सीखते रहे और फिल्मी पोस्टर और दुकान के आगे लगे होर्डिंग से पढ़ने में उन्हें मदद मिलती थी । मुंबई आने के दौरान अन्नाभाऊ के साथ एक ऐसी घटना हुई जिसके बाद उनके मन का क्रांतिकारी भाव उनके अधिकतर रचनाओं में देखने को मिलता है, दरअसल जब अन्नाभाऊ और उनका परिवार पैदल यात्रा करके मुंबई आ रहा था उस दौरान अन्ना को बेहद भूख लगी थी और उन्होंने आम से लगा हुआ एक पेड़ देखा अन्ना ने कुछ आम पेड़ से तोड़ दिए लेकिन यह बात पेड़ के मालिक को पता चल गई इस दौरान अन्ना ने यह कोशिश की कि वह आम को मालिक को वापस दे दे लेकिन मालिक उन्हें अपमान के साथ बार-बार और आम के पेड़ में लटकाने के लिए कह रहा था जो कि अन्ना भाऊ को बेहद बुरा लगा, इस तरह के अपमान से जन में आक्रोश का असर अन्ना के कई रचनाओं में पाठक को पढ़ने मिलता है ।

वक्त बदलता गया और इस दौरान मशीनीकरण के कारण मुंबई में बेरोजगारी बढ़ने लगी और अमीर गरीब लोगों के बीच के बढ़ते फैसलों ने लोगों को हताश कर दिया जिसके कारण अन्नाभाऊ और उनका परिवार यह सोचने लगा कि उन्होंने मुंबई आकर गलती कर दी । उस वक्त तक रूस देश को आजाद हुए लगभग 25 साल हो गए थे,

अन्नाभाऊ सोवियत संघ के तरक्की के बारे में सुनते थे और उनसे काफी प्रभावित थे, वाह रूस की क्रांति कारी गाथाएं सुनकर काफी उत्साहित हुआ करते इस दौरान सन् 1943 के आस पास स्तालिनग्राद को लेकर उन्होंने एक पावड़ा लिखा, इस पांवड़े का अनुवाद रूसी भाषा में किया गया जिसके बाद अन्ना भाऊ की कृति कथा देश देशांतर तक व्यापक होने लगी । जिसके बाद अन्ना भाऊ ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन तथा गोवा मुक्ति आंदोलन के लिए काम किया ।

अन्नाभाऊ साठे और साहित्य

अन्नाभाऊ साठे क्रांतिकारी युग के लेखक होने के कारण अधिकतर रचनाएं क्रांति से जुड़े हुए लिखे हैं, उन्होंने कई उपन्यास लिखा । निरंतर संघर्षमय  जीवन जीते हुए उन्होंने 14 लोकनाटक 35 उपन्यास और 300 के ऊपर कहानियां लिखी है । लगभग ६ फिल्मों की पटकथा लिखी उनके कई लिखे हुए उपन्यास पर अब तक फिल्म बन चुकी है ।