वायु प्रदूषण पर निबंध – Essay On Air Pollution in Hindi

पर्यावरण में दूषित पदार्थों के प्रवेश के कारण पर्यावरण मैं जो प्राकृतिक असंतुलन निर्मित होता है उसी को प्रदूषण कहा जाता है। पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ने की वजह से पृथ्वी पर स्थित सभी प्राणी और वनस्पति  को बड़ी मात्रा में हानि पहुंचती है उनके लिए प्रदूषित पर्यावरण बहुत ही हानिकारक होता है।

वायु प्रदूषण पर निबंध – Long and Short Essay On Air Pollution in Hindi

पृथ्वी पर पर्यावरण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बहुत ही नुकसान पहुंचता है पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ जाता है। जब प्रकृति के द्वारा बनी निर्मित हुई वस्तुओं का सहयोग मनुष्य के द्वारा बने हुए उसमें से होता है या यह कहें मनुष्य जिन वस्तुओं का निर्माण स्वयं करता है और उनका इस्तेमाल करता है इस्तेमाल करने के बाद उन वस्तुओं से खराब हुए अवैध को जब वह प्राकृतिक आवरण में छोड़ देता है तो प्रदूषण फैलने लगता है।

यातायात के समय वाहनों से जो धुआ निकलता है कल कारखानों से जो केमिकल निकलते हैं आणविक संयत्रों से निकलने वाली गैसें तथा धूल-कण।जंगलों में पेड़ पौधें के जलने से, कोयले के जलने से तथा तेल शोधन कारखानों आदि से निकलने वाला धुआँ।

हवा में गैर जरूरी गैसों के हो जाने से मानव प्राणी और वनस्पतियों पर उसका गलत प्रभाव पड़ता है जिसकी वजह से उन्हें नाना प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है उन्हें कई प्रकार के रोग हो जाते हैं जैसे कि सुनने की क्षमता कम हो जाती है अंधापन आ जाता है या आंख से कम दिखाई देने लगता है त्वचा की बीमारी हो जाती है.

लंबे समय तक रहने वाली गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं वायु प्रदूषण से सर्दियों में जरूरत से अधिक धुंध छाने लगता है जिसकी वजह से आंखों में जलन होती है ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है दिखने की क्षमता कमजोर हो जाती है हमारे पेयजल और खाने की वस्तुएं दूषित हो जाती हैं वायु प्रदूषण की वजह से ही मौसम पर भी गलत प्रभाव पड़ता है.

जरूरत से ज्यादा ठंड पड़ने लगती है जरा से ज्यादा गर्मी होने लगती है या तो बारिश के मौसम में बारिश कम होती है या बारिश भी जोरो से ज्यादा होती है मौसम सही समय पर ना करके आगे पीछे हो जाते हैं तरह तरह के खातिर रोग हो सकते हैं यह से अनुवांशिक और कैंसर दमा की बीमारी भी हो सकती है हवा में दूषित गैसों की मात्रा बढ़ने की वजह से अम्लीय वर्षा भी होती है जिसका बुरा प्रभाव पड़ता है.

जल प्रदूषण

जल प्रदूषण यानी पानी की शुद्धता को या पानी को खराब करने के लिए पानी में हानिकारक तत्व वृद्धि हो जाना जिसकी वजह से जल दूषित हो जाता है वह हमारे उपयोग यानि पीने के योग्य या अन्य घरेलू कार्य के उपयोग के लिए नहीं होता वर्तमान औद्योगिक युग में और जनसंख्या वृद्धि के कारण कल कारखानों से घोषित केमिकल युक्त पदार्थ निकलते हैं जल निकलता है.

उन सभी को नदियों में तालाबों में विसर्जित कर दिया जाता है घनी आबादी वाले शहरों से गटर नालों से निकलने वाला दूषित जल कचरा इत्यादि सभी को नदियों यार समुंदर में छोड़ दिया जाता है जिसकी वजह से भारी जल प्रदूषण होता है और उसका परिणाम यह होता है कि प्राणी यानी पशु पक्षी जो भी जल का उपयोग करते हैं पीने के लिए उनके लिए हानिकारक होता है जो नष्ट होने लगती है,

गंगाजल जब भूमि के अंदर प्रवाहित होता है तो उसकी वजह से पेड़ पौधे भी जल कर नष्ट होने लगते हैं।  पृथ्वी पर जल एकमात्र ऐसा अवयव है जिसके बिना दुनिया में सजीव या निर्जीव कोई भी चलायमान नहीं हो सकती यदि यह कहा जाए कि जल जीवन का स्रोत है तो गलत न होगा जल प्रदूषण होने की वजह से जब पानी दूषित हो जाता है और वह दूषित जल जिन भी क्षेत्रों में उपयोग के लिए ले जाया जाता है.

जैसे कि कृषि घरेलू उपयोग मनुष्य और प्राणियों के पीने के लिए उपयोग होता है तो दूषित जल की वजह से नाना प्रकार की समस्याएं सामने आ जाती फसल रूप से नहीं होते उनके ऊपर से दूषित हो जाती है उसका उपयोग खाने में करते समय कई प्रकार की बीमारियां भी सामने देखने को मिलती है जिसकी वजह से पूरा पर्यावरण दूषित होता है और उसका बहुत बड़ा नुकसान भी पहुंचता है।

भूमि प्रदूषण

भूमि प्रदूषण का अर्थ जमीन पर जहरीले, गैर जरूरी और अनुपयोगी पदार्थों के भूमि में विसर्जित भूमि प्रदूषण होता है, क्योंकि इससे भूमि गुणवत्ता का क्षरण होता है तथा मिट्टी की । लोगों की भूमि के प्रति बढ़ती लापरवाही के कारण भूमि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है।कृषि में उर्वरकों, रसायनों तथा कीटनाशकों का अधिक प्रयोग।

औद्योगिक इकाईयों, खानों तथा खादानों द्वारा निकले ठोस कचरे का विसर्जन।भवनों, सड़कों आदि के निर्माण में ठोस कचरे का विसर्जन।कागज तथा चीनी मिलों से निकलने वाले पदार्थों का निपटान, जो मिट्टी द्वारा अवशोषित नहीं हो पाते।प्लास्टिक की थैलियों का अधिक उपयोग, जो जमीन में दबकर नहीं गलती।घरों, होटलों और औद्योगिक कृषि योग्य भूमि की कमी।भोज्य पदार्थों के स्रोतों को दूषित करने के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक।तथा वायु प्रदूषण में वृद्धि।

ध्वनि प्रदूषण

अनियंत्रित, अत्यधिक तीव्र एवं असहनीय ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता को ‘डेसिबल इकाई’ में मापा जाता है शहरों एवं गाँवों में किसी भी त्योहार व उत्सव में, राजनैतिक दलों के चुनाव प्रचार व रैली में लाउडस्पीकरों का अनियंत्रित इस्तेमाल/प्रयोग। अनियंत्रित वाहनों के विस्तार के कारण उनके इंजन एवं हार्न के कारण।

औद्योगिक क्षेत्रों में उच्च ध्वनि क्षमता के पावर सायरन, हॉर्न तथा मशीनों के द्वारा होने वाले शोर।जनरेटरों एवं डीजल पम्पों आदि से ध्वनि प्रदूषण। ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव से श्रवण शक्ति का कमजोर होना, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन  कान की बीमारी और मानसिक स्थिति कमजोर होने का डर बना रहता है।