कृषि पर निबंध – Essay On Agriculture in Hindi

कृषि का अर्थ मुख्य रूप से फसले व धान उगाना और पशुपालन करना होता है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की रीड़ है। वर्तमान समय में कृषि को केवल फसले उगाने तक ही सीमित रखा गया है परंतु यह एक बहुत विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ कार्य है जैसे इसमे दुग्ध उत्पादन, पशुपालन,आदि भी शामिल है।

कृषि पर निबंध – Essay On Importance Of Agriculture in Hindi

यह भारत में रोजगार का एक प्रमुख स्रोत है,भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारशिला इसी पर निर्धारित है,यह विदेशी मुद्रा अर्जन का मुख्य साधन भी है। प्राचीन समय में मनुष्य भोजन की तलाश में वन-वन भटकते थे,गुफाओं में खोज करते थे परंतु अब कृषि के आने के बाद मनुष्यों को और भटकना नही पड़ता है और इससे एक ही स्थान पर समाज और सभ्यता का निर्माण भी संभव हो पाया है।

ऐसी मान्यता है कि कृषि की शुरुआत पश्चिम ऐसिया से हुई जहां हमारे पूर्वज गेहू और जौ उगाते थे और साथ ही भेड़, बकरी और गाय भी चराते थे। मनुष्य ने खेती की शुरुआत 7500 बीसी और 3000 बीसी वह समय था जब कृषि का मिश्र देशों और सिंधु सभ्यता तक विस्तार हुआ और इस सभ्यता में मोहनजोदड़ो और हरप्पा के क्षेत्र को कृषि का केन्द्र माना जाता है।

वैदिक काल में कृषि को बहुत महत्व मिला उस समय लोहे के औज़ारों का प्रयोग किया जाता था। तपश्चात बौद्ध के समय में पेड़ों का महत्व बढ़ा जिसके कारण कृषि में अत्यधिक वृद्धि हुई। फिर तकनीकी दौर आया जिसमे सिचाई की सुविधा आयी अब लोगों के लिए यह आवयशक नही रह गया था कि वेद नदी या नहर के किनारे घर बनाये। इस युग में मुख्य रूप से चावल और गेहू बोये जाते थे।

इसके उपरांत अंग्रेज़ भारत आये और वे सिर्फ अपना लाभ चाहते थे इसी कारणवश उन्होंने किसानों को नील और कपास उगाने का आदेश दिया इससे कृषि के क्षेत्र में बहुत बदलाव आया। अब लोग खाने के साथ-साथ मुनाफे के लिए भी खेती करने लगे। इन वाणिज्यिक फसलों का प्रयोग अंग्रेज़ कच्चे माल की तरह भी करते थे और साथ ही यूरोपियन देशों में बेचने के लिए भी करते थे।

अंग्रेजों ने भारतीय किसानों को ऐसी फसलें उगाने के लिए विवस किया जिसके कारण उस वक़्त भारत पर विकट खाद्य संकट आ गया था। भारतवासियों ने इसका घोर विरोध किया,कई सारे आंदोलन हुए और अंत में विजय भरायवासियों की हुई।

आज सम्पूर्ण विश्व में तेज़ी से विकास हो रहा है फिर भी कई ऐसे देश है जहाँ गरीबी अपनी चरम सीमा पर है और इसी वजह से खाद्य संकट बना हुआ है। हालांकि खेती के लिए कई नई तकनीकों का आविष्कार हुआ है और आज भी किया जा रहा है फिर भी इन तकनिकों के कारण उतपन्न प्रदूषण से भूमि का पतन हो रहा है और भूमि कम उपजाऊ होती जा रही है।

इसी भूमि प्रदूषण के कारण दुनिया की कुल कृषि करने योग्य ज़मीन से 73 प्रतिशत खाद्यान्न उगाए जा रहे है और ये केवल लोगों की 74 प्रतिशत जरुरतों को पूरा करने में सक्षम है।इसलिए हमें ऐसी तकनीक की खोज करनी चाहिए जिससे भूमि कम प्रदूषित हो।

आज भारत की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है पर बिगड़ते हालातों के कारण इनकी दशा अत्यंत दयिनी है,सभी किसान गरीबी रेखा के नीचे आते जा रहे है। भारत की जनसंख्या निरंतर बढ़ती जा रही है जिसके कारण लोगों की भूख की मांग भी बढ़ती जा रही है। इसके लिए यह अनिवार्य है कि हम ऐसी तकनीकों का प्रयोग करे जिससे भूमि प्रदूषित भी न हो और लोगों की मांग भी पूर्ण हो सके। कृषि का अर्थव्यवस्था को बनाये रखने में बहुत बड़ा हाथ है, कच्चे माल का आदान-प्रदान इस क्षेत्र में विशेष रूप से होता है।

चावल के मिल, तेल मिल सभी को कच्चा माल चाहिए होता है और वे कृषि पर निर्भर करते है। बढ़ते औद्योगिकरण के बाद भी कृषि के क्षेत्र में रोजगार कम नही हुआ है,और भविष्य में जैसे -जैसे नई तकनीकों का अविष्कार होगा यह और उन्नत होंगी।

अंतरास्ट्रीय स्तर पर भी कृषि ने अपनी भूमिका निभाई है,भारत से मुख्य रूप से मसले,तम्बाकू,चाय की पत्तियां आदि का निर्यात किया जाता है और इससे भारत को काफी फायदा भी होता है पर वही दूसरी ओर निर्यातों पर अधिक कर हो जाने के कारण भारी नुकसान भी उठाना पड़ता है। सभी देशों के कर समान नही होते है.

विकसित देशों के कर अधिक होते है क्योंकि वे इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा नही बढ़ना चाहते है वे अपने देश केउद्योगों की उन्नति करना चाहते है। कृषि दूसरे उद्योगों का भी पूर्ण रूप से समर्थन करता है,कई ऐसे उद्योग है जो कृषि से जुड़े हुए है जैसे कि परिवहन विभाग। इसका कृषि के क्षेत्र में विशेष रूप से योगदान है,यह कृषि उत्पादों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने में सहायता प्रदान करता है।

कृषि का क्षेत्र लाखों लोगों के रोजगार का जरिया है। इसका विकास यानी देश का विकास। सरकार इसीकी उन्नति के लिए काफी प्रयत्नशील है। वर्तमान समय में कृषि की जो स्तिथि है उसे दुर्दसा का नाम दिया जा सकता है क्योंकि आज हमारे अन्न देवता अर्थात हमारे देश के किसान जो 135 करोड़ जनता को अन्न प्रदान कर रहे है स्वयं भूख से व्याकुल है,वे गरीबी की इतनी निचली स्तर तक गिर चुके है कि उनके पास आत्महत्या के सिवा दूसरा कोई रिश्ता शेष नही बचता।

अतः कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीड़ है और न केवल भारत के अपितु प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था की रीड़ है, इसलिए यदि देश को उन्नत करना है तो कृषि को उन्नत करना होगा साथ ही ऐसी तकनिकों का अविष्कार करना होगा जिससे भूमि प्रदूषण न हो।

कृषि हमारे अन्न देवता है हमे उनका सदैव ही सम्मान करना चाहिए , सरकार को भी चाहिए कि वे ऐसी नीतियां बनाये जिससे कृषि का क्षेत्र विकसित हो और उनका उद्धार हो,उनकी परेशानियां कम हो और वे सुख से जीवन व्यतीत कर सके।