डॉ. भीमराव आंबेडकर जो कि स्वतंत्रत भारत के संविधान के प्रमुख निर्माता , समाज सुधारक ,श्रेष्ठ चिन्तक, महान लेखक, तथा ओजस्वी वक्ता के साथ साथ स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री थे । इसके साथ ही साथ डॉ आंबेडकर विधि विशेषज्ञ, परिश्रमी, अत्यंत प्रतिभावान एवं उत्कृष्ट कौशल होने के बाद भी अत्यंत उदारवादी थे।
डॉ अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिवस – Dr. Ambedkar Mahaparinirvan Day
एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने और देश विदेश में पढाई करने के बाद भी डॉ. आंबेडकर ने स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा एक उच्छिष्ट व्यक्ति के रूप में भारतीय संविधान के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसी कारण से डॉ. आंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है। डॉ. आंबेडकर ने भारत से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात कोलम्बिया विश्वविद्यालय से एम. ए. तथा पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की ।
दूरदर्शी होने के कारण उन्होंने अपने शोध का विषय “भारत का राष्ट्रीय लाभ” रखा था जिस से वो भारत के विकास के लिए उपयुक्त संसाधन के बारे में शोध कर सकें । इस शोध के सफल होने कारण उनको बहुत प्रशंसा मिली ।
भारत वापस लौटने के बाद सन 1923 में उन्होंने बम्बई उच्च न्यायालय में वकालत शुरु की जिसमे उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा किन्तु इतनी कठनाईयों के बावजूद भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी तथा अपने कार्य में निरंतर आगे बढते रहे। डॉ. आंबेडकर ने प्रजातंत्र के समर्थन में नहीं थे उनकी लोकतंत्र में गहरी आस्था थी, उनका मानना था कि देश के मानव निर्मित संस्था है इसलिए प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार मिलना चाहिए । डॉ आंबेडकर इसे मानव द्वारा बनाई गयी एक पद्धति मानते थे।
उनका मानना था कि लोकतंत्र का सबसे बङा कार्य “समाज की आन्तरिक अव्यवस्था को सुधारना और बाह्य अतिक्रमण से रक्षा करना है।“ वे केवल राज्य को ही निरपेक्ष शक्ति नही मानते थे। उनका मानना था कि- “ कोई भी राज्य स्वयं ऐसे समाज का रूप नहीं ले सकता इसमें सबकुछ निहित हो अथवा राज्य ही वहां होने वाले विचारों एवं क्रियाओं का स्रोत हो।
अपने जीवन में डॉ आंबेडकर ने अनेकों कष्ट सही किन्तु अपने संघर्ष से हार न मानने वाले तथा कठोर परिश्रमों के परिणामस्वरूप वो प्रगति की बुलंदियों तक पहुंचे। उनके इन्ही प्रतिभाओं के कारण ही भारत के संविधान रचना में उन्हें प्रारूप समिति का अध्यक्ष चुना गया। ६ दिसंबर सन १९५६ में उनकी मृत्यु के बाद प्रत्येक वर्ष ६ दिसंबर को डॉ अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मना कर उनके योगदानों को याद किया जाता है।
डॉ अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिवस का आरम्भ
भारतीय संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष एवं संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर का देहावसान ६ दिसंबर १९५६ को हुआ था , उसके उपरांत ६ दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि को भारत में प्रत्येक वर्ष महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है । डॉ अम्बेडकर का देहावसान 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में हुआ था।
इसके पश्चात् उनके पार्थिव शरीर को मुंबई लाया गया था। अगले दिन 7 दिसंबर 1956 को जब उनका दाह संस्कार हुआ था तब दाह संस्कार से पूर्व उन्हें साक्षी रख उनके 10,00,000 अनुयायिओं ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। डॉ अम्बेडकर बाबा साहेब के नाम से भी मशहूर थे उन्होंने ने छुआ-छूत और जातिवाद को ख़त्म करने के लिए अनेक आंदोलन किए थे।
अपना पूरा जीवन उन्होंने समाज के गरीबों, दलितों और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए लगा दिया. डॉ अंबेडकर ने स्वयं भी इस भेदभाव एवं जातिवाद के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना किया है। इस भेदभाव ने ही भारतीय समाज को अंदर से खोखला बना दिया था। राजनैतिक एवं सामाजिक कार्यों में बेहद व्यस्त रहने के बावजूद वो पढ़ने लिखने के लिए समय निकाल ही लेते थे।
बौद्ध धर्म के द्वारा निर्धारित प्रमुख सिद्धांतों और लक्ष्यों में से एक परिनिर्वाण है। इसका वास्तविक अर्थ मृत्यु के बाद निर्वाण है। बौद्ध धर्म के सिध्धांतो के अनुसार, जो व्यक्ति निर्वाण को प्राप्त कर लेता है वह इन संसारिक इच्छाओं , मोह माया तथा जीवन चक्र से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर लेगा और उसका धरती पर पुनः जन्म नहीं होगा।
कैसे प्राप्त होता है निर्वाण?
निर्वाण को प्राप्त अत्यंत जटिल है। ऐसा माना जाता है कि इसकी प्राप्ति के लिए व्यक्ति को अत्यंत सदाचारी होने के साथ साथ धर्मसम्मत जीवन व्यतीत करना होता है। भगवान बुद्ध के ८० वर्ष जीवनकाल के बाद उनके निधन को महापरिनिर्वाण कहा गया।
डॉ. आंबेडकर ने बौद्ध धर्म कब अपनाया था ?
भारतीय संविधान निर्माता एवं संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ.भीमराव आंबेडकर ने कई वर्षों तक बौद्ध धर्म का अध्ययन किया था। वर्षों के इस गहन अध्ययन के पश्चात् 14 अक्टूबर, 1956 को उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया था। इस प्रक्रिया में उनके साथ उनके लगभग 5 लाख समर्थकों ने भी बौद्ध धर्म को अपना लिया था ।
डॉ आंबेडकर का अंतिम संस्कार ?
डॉ आंबेडकर की मृत्यु दिल्ली में हुई थी किन्तु उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के नियमों के अनुसार मुंबई शहर की दादर चौपाटी पर हुआ था । वर्तमान समय में उस भूमि को चैत्य भूमि के तौर पर जाना जाता है।
डॉ आंबेडकर की पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में क्यों मनाते है?
समाज में फैले भेदभाव के कारण दलितों की दयनीय स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने अनेक कार्य किये और छूआछूत जैसी कुप्रथा को समाज से पूर्णतया समाप्त करने में उन्होंने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। इसलिए उनके समर्थक उन्हें बौद्ध गुरु मानते हैं । उनके अनुयायी यह मानते है कि उनके गुरु डॉ आंबेडकर भगवान बुद्ध की तरह ही बहुत प्रभावशाली और सदाचारी थे। उनके अनुसार डॉ. आंबेडकर अपने नेक कार्यों के कारण ही वह निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं। इसी कारणवश उनकी पुण्यतिथि ६ दिसंबर को प्रत्येक वर्ष महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
कैसे मनाया जाता हैं महापरिनिर्वाण दिवस?
डॉ आंबेडकर के अनुयायियों के साथ साथ अन्य भारतीय नेता इस दिवस पर चैत्य भूमि जाकर भारतीय संविधान के निर्माता को श्रद्धांजलि दे कर उन्हें याद करते हैं।
उपसंहार
डॉ आंबेडकर ने भारतीय संविधानके निर्माण के प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये । इसके साथ ही साथ संविधान सभा में उपस्थित अन्य सदस्यों द्वारा उठायी गयी आपत्तियों, शंकाओं एवं जिज्ञासाओं का भी निवारण उन्होंने बङी ही कुशलता से किया । उनके महान व्यक्तित्व तथा गहन चिन्तन का संविधान के स्वरूप पर गहरा प्रभाव पङा।
उनके इसी प्रभाव के कारण ही भारतीय संविधान में समाज के दलित वर्गों, अनुसूचित जातियों और अन्य जनजातियों के उत्थान के लिये विभिन्न प्रकार के संवैधानिक व्यवस्थाओं और प्रावधानों को सम्मिलित किया गया। इसके परिणाम स्वरूप भारतीय संविधान सामाजिक न्याय के लिए एक ऐसा महान दस्तावेज बना जो अन्य देशों से अलग तथा न्यायपूर्ण है। डॉ आंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर उनके इन्ही महान कार्यों को याद किया जाता है तथा जनजागरुकता बढ़ाई जाती है।