एक ऐसा मनुष्य जो दूसरे मनुष्य के बारे में सोचता हो उसकी खुशी के बारे में सोचता हो, उसके चेहरे की मुस्कुराहट के बारे में सोचता हो उसे दयालु कहते हैं। ऐसा मनुष्य बन पाना बहुत ही मुश्किल का कार्य है लेकिन फिर भी इस संसार में कुछ दयालु लोग हैं जो सदैव अपने से ज्यादा किसी और के बारे में सोचते है ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो किसी के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए वह कुछ भी कर सकते हैं। इसे ही हम दयालुता कहते हैं।
दयालुता पर निबंध – Long and Short Essay On Kindness in Hindi
दयालुता एक पाठ नहीं है जिसे हम पढ़ कर एक नियमित समय पर खत्म कर सकें यह कैसा गुड है जो व्यक्ति का आचरण दिखाता है। दया करने का मतलब यह नहीं होता है कि आप सामने वाले इंसान के लिए कुछ बड़ा करें आपके ₹1 का योगदान भी उसके लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। आज हर एक मनुष्य की दिनचर्या बहुत ही ज्यादा व्यस्त रह रही है।
सब दिन भर इधर-उधर पैसे रुपए के लिए भागते रहते हैं कभी कभी तो किसी को अपने लिए भी समय नहीं मिल पाता कभी-कभी तो उन्हें परिवार से बात किए हुए महीनों हो जाते हैं लेकिन फिर भी अगर हम उस में से थोड़ा सा भी समय निकाल कर किसी की मदद कर दें तो हमें वह खुशी मिलती है जो शायद हमें हजारों रुपए मिलने के बाद ना हो।
दया एक ऐसी चीज है जिसे इंसान करके दुनिया का सबसे बड़ा सुख पाता है ।शायद उसे वह सुख लाखों करोड़ों रुपए खर्च करके ना मिल पाता हो। दया हमें ईश्वर के करीब इसलिए ले जाती है ।इंसान को जो आंतरिक सुख दया करने के बाद मिलता है वही सुख इंसान को ईश्वर का नाम जपने के बाद मिलता है ईश्वर ने यह कहा भी है की दया सबसे बड़ा धर्म है ।
दया से पहले शायद स्वयं ईश्वर भी नहीं आते हैं । अगर ईश्वर ने हमें अच्छा जीवन दिया है और इसमें ईश्वर ने अपनी दयालुता दिखाई है तो हमें भी बिल्कुल वही कार्य करना चाहिए जो ईश्वर ने हमारे साथ किया है क्यों ना हम किसी और की जिंदगी अपनी जिंदगी जैसे सवार दे भगवान सबसे ज्यादा तब खुश होते हैं जब मनुष्य किसी की मदद करते हैं उसके चेहरे की मुस्कुराहट के लिए वह अपनी सीमा भी लांग सकते हैं।
दया निस्वार्थ भाव से की जानी चाहिए
दया निस्वार्थ भाव से करनी चाहिए दया करने के बाद कभी भी हमें यह नहीं सोचना है हमें इसका फल मिलेगा या नहीं।अगर हम लोगों से यह उम्मीद रखते हैं कि वह हमारे बारे में अच्छी बातें करेंगे तो यकीन मानिए यह एक दया नहीं है यह एक प्रकार का व्यापार है ।यह स्पष्ट रूप से बताता है कि यह एक स्वार्थ है और इसके पीछे मनुष्य का लाभ छिपा हुआ है। दया करने के बाद किसी भी मनुष्य को ज्यादा दिखावटीपन नहीं करना चाहिए ।
दयालुता का दूसरा नाम जानवरों के प्रति प्रेम है
जानवरों से प्रेम करना तो कोई भगवान से सीखे । जो भी मनुष्य जानवरों से प्रेम करते हैं वह भी किसी दयालुता से कम नहीं है जानवर भी भगवान द्वारा बनाए गए एक जीव है हम जानवरों से जितना ज्यादा प्यार करते हैं जानवर भी हम से उतना ही ज्यादा प्यार करते हैं ।तो जैसे हम सारे मनुष्य के साथ रहते हैं हमें वैसे ही जानवरों के साथ भी पेश आना चाहिए। क्योंकि जानवर भी इस प्रकृति का एक हिस्सा है। हमने बहुत जगह देखा है लोग जानवरों के साथ बहुत ही ज्यादा हिंसक व्यवहार करते हैं उन्हें पत्थर चलाना, मारना, पीटना ,काटना ,परेशान करना उनका एक मनोरंजक कार्य हो जाता है जो उन्हें नहीं करना चाहिए ।
निष्कर्ष
दया का व्यवहार करना हमारे लिए कोई बहुत ही बड़ा कार्य नहीं है। हमें अपने आसपास के लोगों को ही सिर्फ खुश रखना है। अगर हम अपने आसपास के लोगों को खुश रखते हैं तो शायद संसार का हर एक मनुष्य और प्राणी खुश रहेंगे ।दया करना एकमात्र हमारा अंतिम लक्ष्य होना चाहिए क्योंकि मरणोपरांत हमारे पास इस युग के कमाए हुए पैसे रुपए नहीं रहेंगे उस समय हमारे पास रहेगा तो वह कार्य जो हमने दूसरों के लिए किए हैं और दूसरों ने हमारे लिए किया है।