सी वी रमन की जीवनी – C V Raman Biography in Hindi

इस पोस्ट में सी वी रमन की जीवनी (C V Raman Biography in Hindi) पर चर्चा करेंगे। सीवी रमन आधुनिक भारत के एक महान वैज्ञानिक थे, जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अपना अति महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपनी अनूठी खोजों से भारत को विज्ञान की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान दिलवाई।

‘रमन प्रभाव’ (Raman Effect) सीवी रमन की अद्भुत और महत्वपूर्ण खोजों में से एक थी, जिसके लिए उन्हें साल 1930 में नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा गया था।

वहीं अगर सीवी रमन ने यह खोज नहीं की होती तो शायद हमें कभी यह पता नहीं चल पाता कि ‘समुद्र के पानी का रंग नीला क्यों होता है, और इस खोज के माध्यम से ही लाइट के नेचर और बिहेवियर के बारे में भी यह पता चलता हैं कि जब कोई लाइट किसी भी पारदर्शी माध्यम जैसे कि सॉलिड, लिक्वड या गैस से होकर गुजरती है तो उसके नेचर और बिहेवियर में बदलाव आता है।

वास्तव में उनकी इन खोजों ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत को एक नई दिशा प्रदान की, जिससे देश के विकास को भी बढ़ावा मिला। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि सीवी रमन को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न और लेनिन शांति पुरस्कार समेत विज्ञान के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण कामों के लिए तमाम पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।

सी वी रमन की जीवनी – C V Raman Biography in Hindi

दक्षिण भारत के तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में 7 नवम्बर 1888 को, भारत के महान वैज्ञानिक सीवी रमन एक साधारण से ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। वह चंद्रशेखर अय्यर और पार्वती अम्मल की दूसरी संतान थे। उनके पिता चंद्रशेखर अय्यर ए वी नरसिम्हाराव महाविद्यालय, विशाखापत्तनम, (आधुनिक आंध्र प्रदेश) में फिजिक्स और गणित के एक प्रख्यात प्रवक्ता थे।

वहीं उनके पिता को किताबों से बेहद लगाव था, उनके पिता को पढ़ना इतना पसंद था कि उन्होंने अपने घर में ही एक छोटी सी लाइब्रेरी भी बना ली थी, हालांकि आगे चलतक इसका फायदा सीवी रमन (C V Raman Biography in Hindi) को मिला,

इसके साथ ही वह पढ़ाई-लिखाई के माहौल में पले और बढ़े हुए, वहीं सीवी रमन ने छोटी उम्र से ही अंग्रेजी साहित्य और विज्ञान की किताबों से दोस्ती कर ली थी, और फिर बाद में उन्होंने विज्ञान और रिसर्च के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए और भारत को विज्ञान के क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

सीवी रमन की पढ़ाई

सीवी रमन बेहद तेज बुद्धि के एक होनहार और प्रतिभाशील छात्र थे, जिनकी पढ़ाई में शुरुआत से ही गहरी रुचि थी, वहीं उनकी किसी चीज को सीखने और समझने की क्षमता भी बेहद तेज थी, यही वजह है कि उन्होंने महज 11 साल की उम्र में विशाखापत्तनम के सेंट अलोय्सिअस एंग्लो-इंडियन हाई स्कूल से अपनी 10वीं की परीक्षा पास की थी, जबकि 13 साल की उम्र में उन्होंने अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी कर ली थी।

सीवी रमन शुरुआत से ही पढ़ने में काफी अच्छे थे, इसलिए उन्होंने अपनी 12वीं की पढ़ाई स्कॉलरशिप के साथ पूरी की। इसके बाद उन्होंने साल 1902 में प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास (चेन्नई) में एडमिशन लिया था, और वहां से साल 1904 में अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री प्रथम श्रेणी के साथ हासिल की, इसके साथ ही सीवी रमन ने इस दौरान पहली बार फिजिक्स में ‘गोल्ड मेडल’ भी प्राप्त किया था।

इसके बाद उन्होंने साल 1907 में मास्टर डिग्री हासिल करने के लिए मद्रास यूनिवर्सिटी में ही एमएससी में एडमिशन लिया। आपको बता दें कि इस दौरान उन्होंने फिजिक्स को मुख्य विषय के तौर पर चुना, हालांकि वे इस दौरान क्लास में कम ही आते थे,

क्योंकि उन्हें थ्योरी नॉलेज से ज्यादा लैब में नए-नए प्रयोग करना पसंद था, उन्होंने अपनी एमएससी की पढ़ाई के दौरान ही ध्वनिकी और प्रकाशिकी (Acoustics and Optics) के क्षेत्र में रिसर्च करनी शुरु कर दी थी।

वहीं उनके प्रोफेसर आर एस जोन्स भी उनकी प्रतिभा को देखकर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने सीवी रमन (C V Raman Biography in Hindi) को उनकी रिसर्च को ‘शोध पेपर’ के रुप में पब्लिश करवाने की सलाह दी,

जिसके बाद नवंबर, साल 1906 में लंदन से प्रकाशित होने वाली ‘फ़िलॉसफ़िकल पत्रिका’ (Philosophical Magazine) में उनका शोध प्रकाश का ‘आणविक विकिरण‘ को प्रकाशित किया गया। आपको बता दें कि उस दौरान वह महज18 साल के थे।

सीवी रमन ने सहायक लेखपाल के तौर पर की अपने करियर की शुरुआत

मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद सीवी रमन की अद्भुत प्रतिभा को देखते हुए कुछ प्रोफेसर्स ने उनके पिता से हायर स्टडीज के लिए उन्हें इंग्लैंड भेजने की भी सलाह दी, लेकिन सीवी रमन का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने की वजह से वह आगे की पढ़ाई के लिए विदेश तो नहीं जा सके।

लेकिन इसी दौरान ब्रिटिश सरकार की तरफ से एक परीक्षा आयोजित करवाई गई थी, जिसमें सीवी रमन ने भी हिस्सा लिया था और वह इस परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद उन्हें सरकार के वित्तीय विभाग में नौकरी करने करने का मौका मिला, फिर कोलकाता में उन्होंने सहायक लेखापाल के तौर पर अपनी पहली सरकारी नौकरी ज्वाइन की।

हालांकि इस दौरान भी उन्होंने एक्सपेरिंमेंट और रिसर्च करना नहीं छोड़ा, वे कोलकाता में ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस’ लैब में अपनी खोज करते रहते थे, नौकरी के दौरान जब भी उन्हें समय मिलता था, वह अपनी खोज में लग जाते थे।

सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर कलकत्ता यूनिवर्सिटी में बने प्रोफेसर

हालांकि, विज्ञान के क्षेत्र में कुछ करने के उद्देश्य से उन्होंने साल 1917 में ही उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस’ लैब में मानद सचिव के पद पर ज्वाइन कर लिया था।

वहीं इसी साल उन्हें कलकत्ता यूनिवर्सिटी से भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर का भी जॉब ऑफर मिला था, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया और वे भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर के तौर पर कलकत्ता यूनिवर्सिटी में अपनी सेवाएं देने लगे, और अब वे अपनी रुचि के क्षेत्र में काम करके बेहद खुश भी थे।

इसके बाद साल 1924 में सीवी रमन को ‘ऑपटिक्स’ के क्षेत्र में उनके सराहनीय योगदान के लिए लंदन की ‘रॉयल सोसायटी’ की सदस्य बनाया गया।

‘रमन इफ़ेक्ट’ की खोज

‘रमन प्रभाव’ की खोज उनकी वो खोज थी, जिसने भारत को विज्ञान के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान दिलवाई। उन्होंने 28 फरवरी, साल 1928 को कड़ी मेहनत और काफी प्रयास के बाद ‘रमन प्रभाव’ की खोज की।

वहीं उन्होंने अगले ही दिन इसकी घोषणा कर दी थी। उनकी इस खोज से न सिर्फ इस बात का पता चला कि समुद्र का जल नीले रंग का क्यों होता है, बल्कि यह भी पता चला कि जब भी कोई लाइट किसी पारदर्शी माध्यम से होकर गुजरती है तो उसके नेचर और बिहेवियेर में चेंज आ जाता है।

प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ ने इसे प्रकाशित किया। वहीं उनकी इस खोज को ‘रमन इफेक्ट’ (Raman effect) या ‘रमन प्रभाव’ का नाम दिया गया। इसके बाद वह एक महान वैज्ञानिक के तौर पर पहचाने जाने लगे और उनकी ख्याति पूरी दुनिया में फैल गई।

इसके बाद मार्च, साल 1928 में सीवी रमन (C V Raman Biography in Hindi) ने गलोर स्थित साउथ इंडियन साइन्स एसोसिएशन में अपनी इस खोज पर स्पीच भी दी। इसके बाद दुनिया की कई लैब में उनकी इस खोज पर अन्वेषण होने लगे।

आपको बता दें कि उनकी इस खोज के द्धारा लेजर की खोज से अब रसायन उद्योग, और प्रदूषण की समस्या आदि में रसायन की मात्रा पता लगाने में भी मद्द मिलती है। सीवी रमन एक विज्ञान के क्षेत्र में वाकई में यह एक अतुलनीय खोज थी।

वहीं उन्हें इस खोज के लिए साल 1930 में प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘नोबेल पुरस्कार’ से भी नवाजा गया। वहीं सीवी रमन की इस महान खोज के लिए भारत सरकार ने 28 फरवरी के दिन को हर साल ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रुप में मनाने की भी घोषणा की।

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस (आईआईएस) से रिटायरमेंट

बेंगलौंर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में सीवी रमन को साल 1934 में डायरेक्टर बनाया गया था। हालांकि इस दौरान भी वे स्टिल की स्पेक्ट्रम प्रकृति, हीरे की संरचना, स्टिल डाइनेमिक्स के बुनियादी मुद्दे और गुणों समेत कई रंगदीप्त पदार्थो के प्रकाशीय आचरण पर खोज करते रहे।

इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि सीवी रमन को वाध्य यंत्र और संगीत में भी काफी रुचि थी, इसी वजह से उन्होंने तबले और मृदंगम के संनादी (हार्मोनिक) की प्रकृति की भी खोज की थी। इसके बाद साल 1948 में सी.वी रमन आईआईएस से रिटायर्ड हो गए थे।

रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना

साल 1948 में सी.वी रमन ने वैज्ञानिक सोच और अनुसन्धान को बढ़ावा देने के लिए रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट, बैंग्लोर (Raman Research Institute, Bangluru) की स्थापना की थी।

सीवी रमन का निजी जीवन ( विवाह और बच्चे )

सीवी रमन (C V Raman Biography in Hindi) ने लोकसुंदरी नाम की कन्या को वीणा बजाते हुए सुना था, जिसे सुनकर वह मंत्रमुग्ध हो गए थे और इसके बाद उन्होंने लोकसुंदरी से विवाह करने की इच्छा जताई थी, वहीं इसके बाद परिवार वालों की रजामंदी से वे 6 मई साल 1907 को लोकसुंदरी अम्मल के साथ शादी के बंधन में बंध गए।

जिनसे उन्हें चंद्रशेखर और राधाकृष्णन नाम के दो पुत्रों की प्राप्ति हुई। वहीं आगे चलकर उनका बेटा राधाकृष्णन एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री के रुप में भी मशहूर हुआ था।

वैज्ञानिक सीवी रमन की महान उपलब्धियां

भारत के महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन को विज्ञान के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई पुरुस्कारों से भी नवाजा गया, जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे हैं-

  • वैज्ञानिक सीवी रमन को साल 1924 में लन्दन की ‘रॉयल सोसाइटी’ का सदस्य बनाया गया।
  • सीवी रमन ने 28 फ़रवरी 1928 को ‘रमन प्रभाव’ की खोज की थी, इसलिए इस दिन को भारत सरकार ने हर साल ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में बनाने की घोषणा की थी।
  • सीवी रमन ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस की 16 वें सत्र की अध्यक्षता साल 1929 में की।
  • सीवी रमन को साल 1929 में उनके अलग-अलग प्रयोगों और खोजों के कई यूनिवर्सिटी से मानद उपाधि, नाइटहुड के साथ बहुत सारे पदक भी दिए गए।
  • साल 1930 में प्रकाश के प्रकीर्णन और ‘रमन प्रभाव’ जैसी महत्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें उत्कृष्ठ और प्रतिष्ठित सम्मान नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। आपको बता दें कि वे इस पुरस्कार को पाने वाले पहले एशियाई भी थे।
  • विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए साल 1954 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया।
  • साल 1957 में सीवी रमन को लेनिन शांति पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।

सीवी रमन का निधन

महान वैज्ञानिक सीवी रमन ने अपनी जिंदगी में ज्यादातर टाइम लैब में रहकर, नई-नई खोज और प्रयोग करने में व्यतीत किया। वह 82 साल की उम्र में भी रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट, बैंग्लोर में अपनी लैब में काम कर रहे थे, तभी अचानक उनको हार्ट अटैक आया, जिसकी वजह से वह गिर पड़ें और तभी 21 नवंबर साल 1970 को उन्होंने अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ली।

भारत को विज्ञान के क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाने वाले वैज्ञानिक सी.वी. रमन भले ही आज हमारे बीच मौजूद नहीं हैं लेकिन उनकी महत्पूर्ण खोजें हमेशा हमारे बीच जिंदा रहेंगी, आज भी उनकी अद्भुत खोजों का इस्तेमाल बड़े स्तर पर किया जाता है।

उन्होंने जिस तरह कठोर प्रयास और कड़ी के दम पर ‘रमन प्रभाव’ जैसी खोज के माध्यम से विज्ञान के क्षेत्र में भारत को गौरव हासिल करवाया, वाकई हम सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है, वहीं सीवी रमन का व्यक्तित्व आने वाली कई पीढि़यों को ऐसे ही प्रेरित करता रहेगा। ज्ञानी पंडित की टीम की तरफ से भारत के विज्ञान शिरोमणि, महान कर्मयोगी वैज्ञानिक सी.वी. रमन को हमारा शत-शत नमन।

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