कार्ल मार्क्स की जीवनी – Biography of Karl Marx in Hindi

इस पोस्ट में कार्ल मार्क्स की जीवनी (Biography of Karl Marx in Hindi) पर चर्चा करेंगे। कार्ल मार्क्स (1818 – 1883) जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार, राजनीतिक सिद्धांतकार, समाजशास्त्री, पत्रकार और वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता थे। इनका पूरा नाम कार्ल हेनरिख मार्क्स था। इनका जन्म 5 मई 1818 को त्रेवेस (प्रशा) के एक यहूदी परिवार में हुआ था।। 1824 में इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। तो चलिए कार्ल मार्क्स की जीवनी (Biography of Karl Marx in Hindi) के बारे में अलग अलग विचार को समझते है।

उदाहरण 1. कार्ल मार्क्स की जीवनी – Biography of Karl Marx in Hindi

कार्ल मार्क्स द्वारा समाज, अर्थशास्त्र और राजनीती के विषय में बताई गयी बातो को अक्सर मार्क्सवाद कहा जाता था – उनके अनुसार मानवी समाज विविध समुदाय में संघर्ष के साथ आगे बढ़ रहा है, जिनमे प्रबल समुदाय के बीच द्वन्द है और जो उत्पादित और काम करने वाले समुदाय पर नियंत्रण रखते है,

इस समुदाय के लोग खुद को मजदूरी के बदले में बेचते है। परकीकरण, महत्त्व, वस्तु के जादू-टोन में विश्वास रखना और अपने गुणों को विकसित करने जैसे कई तथ्यों पर मार्क्स ने अपने विचार प्रकट किये है।

मार्क्स ने मजदूरो के बीच किये जाने वाले भेदभाव पर भी अपने विचार प्रकट किये है। इसके साथ ही मार्क्स ने समाज की राजनितिक परिस्थति के बारे में भी अपनी थ्योरी (विचार प्रकट करना) दी है।

इसके साथ ही मार्क्स ने देश में मानवी स्वाभाव और आर्थिक मजबूती को लेकर भी अपनी थ्योरी बताई है। कार्ल मार्क्स के इन विचारो ने लोगो के मन में काफी प्रभाव डाला और इसका परिणाम हमें विकास के रूप में दिखाई देने लगा।

पूँजी

मेहनतकशों की तहरीक में एक नए तूफ़ान की पेशबीनी करते हुए मार्क्स ने कोशिश की कि अपनी अर्थशास्त्रीय रचनाएँ करने की रफ़्तार तेज़ कर दे। अठारह माह की ताख़ीर के बाद जब उस ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन का फिर से आग़ाज़ किया तो उस ने इस रचना को अज नए सिरे से तर्तीब देने का फ़ैसला किया।

और उस को 1859 में प्रकाशित जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी में हिस्से के रूप में ना छापा जाये, बल्कि ये एक अलग किताब हो। 1862 में उस ने ईल कजलमीन को मतला किया कि इस का नाम द कैपिटल और तहती नाम राजनीतिक अर्थव्यवस्था की आलोचना होगा। द कैपिटल इंतिहाई मुश्किल हालात में लिखी गई। अमरीकी ख़ानाजंगी की वजह से मार्क्स अपनी आमदनी का बड़ा ज़रीया खो चुका था। अब वो न्यूयार्क के रोज़नामा द ट्रिब्यून के लिए नहीं लिख सकता था।

उस के बाल बच्चों के लिए इंतिहाई मुश्किलों का ज़माना फिर आ गया। ऐसी सूरत-ए-हाल में अगर एंगलज़ की तरफ़ से मुतवातिर और बेग़रज़ माली इमदाद ना मिलती तो मार्क्स कैपिटल की तकमील ना कर सकता। कैपिटल में कार्ल मार्क्स का प्रस्ताव है कि पूंजीवाद के प्रेरित बल श्रम, जिसका काम अवैतनिक लाभ और अधिशेष मूल्य के परम स्रोत के शोषण करने में है।

1848 में मार्क्स ने पुन: कोलोन में ‘नेवे राइनिशे जीतुंग’ का संपादन प्रारंभ किया और उसके माध्यम से जर्मनी को समाजवादी क्रांति का संदेश देना आरंभ किया। 1849 में इसी अपराघ में वह प्रशा से निष्कासित हुआ।

वह पेरिस होते हुए लंदन चला गया जीवन पर्यंत वहीं रहा। लंदन में सबसे पहले उसने ‘कम्युनिस्ट लीग’ की स्थापना का प्रयास किया, किंतु उसमें फूट पड़ गई। अंत में मार्क्स को उसे भंग कर देना पड़ा। उसका ‘नेवे राइनिश जीतुंग’ भी केवल छह अंको में निकल कर बंद हो गया।

1859 में मार्क्स ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन के निष्कर्ष ‘जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी’ नामक पुस्तक में प्रकाशित किये। यह पुस्तक मार्क्स की उस बृहत्तर योजना का एक भाग थी, जो उसने संपुर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखने के लिए बनाई थी। किंतु कुछ ही दिनो में उसे लगा कि उपलब्ध साम्रगी उसकी योजना में पूर्ण रूपेण सहायक नहीं हो सकती।

अत: उसने अपनी योजना में परिवर्तन करके नए सिरे से लिखना आंरभ किया और उसका प्रथम भाग 1867 में दास कैपिटल (द कैपिटल, हिंदी में पूंजी शीर्षक से प्रगति प्रकाशन मास्‍को से चार भागों में) के नाम से प्रकाशित किया। ‘द कैपिटल’ के शेष भाग मार्क्स की मृत्यु के बाद एंजेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किए।

‘वर्गसंघर्ष’ का सिद्धांत मार्क्स के ‘वैज्ञानिक समाजवाद’ का मेरूदंड है। इसका विस्तार करते हुए उसने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेशी मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के सिद्धांत की स्थापनाएँ कीं। मार्क्स के सारे आर्थिक और राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं।

कार्ल मार्क्स की मृत्यु

दिसम्बर 1881 में अपनी पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद कार्ल मार्क्स को तक़रीबन 15 महीने तक बीमारी ने घेर रखा था। और कुछ समय बाद ही उनके फेफड़ो में सुजन और पशार्वशुल की समस्या होने लगी जिससे लन्दन में 14 मार्च 1883 (उम्र 64 साल) को ही उनकी मृत्यु हो गयी थी।

नागरिकताहिन होते हुए ही उनकी मृत्यु हो गयी थी, लन्दन में ही उनके परिवारजनों और दोस्तों ने कार्ल मार्क्स के शरीर को 17 मार्च 1883 को लन्दन के ही हाईगेट सिमेट्री में दफनाया था।

अनमोल विचार

  • दुनिया के मजदूरों के पास अपनी जंजीर के अलावा खोने के लिए कुछ भी नहीं है, दुनिया के मजदूरों एक हो.
  • समाज व्यक्तियों से मिलकर नहीं बनता है बल्कि उनके अंतर्संबंधों का योग होता है, इन्हीं संबंधों के भीतर ये व्यक्ति खड़े होते हैं.
  • औद्योगिक रूप से अधिक विकसित देश, कम विकसित की तुलना में, अपने स्वयं के भविष्य की छवि दिखाते हैं.
  • पूंजीवादी उत्पादन इसलिए प्रौद्योगिकी विकसित करता है, और विभिन्न प्रक्रियाओं को एक पूर्ण समाज के रूप में संयोजित करता है, केवल संपत्ति के मूल स्रातों जमीन और मजदूर की जमीन खोदकर.
  • जमींदार, सभी अन्य लोगों की तरह, वैसी फसल काटना पसंद करते हैं जिसे कभी बोया ही नहीं.
  • इतिहास खुद को दोहराता है पहली त्रासदी के रूप में, दूसरा प्रहसन के रूप में.
  • लोकतंत्र समाजवाद का मार्ग होता है .
  • कई उपयोगी चीजों का उत्पादन कई बेकार लोगों को भी उत्पन्न करता है.
  • संयोग से निपटने के लिए धर्म मानव मन की नपुंसकता है जिसे वह नहीं समझ सकता.
  • पूंजी मृत श्रम है जो पिशाच की तरह है , जो केवल श्रम चूसकर ही जिन्दा रहता है और जितना अधिक जीता है उतना श्रम चूसता है.

उदाहरण 2. कार्ल मार्क्स की जीवनी – Biography of Karl Marx in Hindi

कार्ल्स मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 को जर्मनी के ट्राइटेर के रहेनिश प्रूशिया में हुआ था। उनके पिता हेईनरीच मार्क्स वकील थे और वोल्टेयर के प्रति समर्पित थे। उन्होंने प्रुसिया के लिए होने वाले आंदोलन में भी हिस्सा लिया था,जबकि उनकी मां हेनरीएट प्रिजबर्ग एक घरेलू महिला थीं।

मार्क्स अपने माता-पिता के 9 बच्चो में से पहले जीवित बच्चे थे। उनके माता-पिता दोनों ही यहूदी पृष्ठभूमि से थे और यहूदी धर्म की शिक्षा देते थे। हालांकि इसकी वजह से मार्क्स को बाद में समाज में भेदभाव जैसी कई समस्याओं से जूझना पड़ा था।

कार्ल्स मार्क्स की शादी एवं बच्चे

मार्क्स से जेनी वोनवेस्टफालेन नाम की महिला से शादी की थी। शादी के बाद वे अपनी पत्नी के साथ पेरिस चले गए। शादी के बाद दोनों को सात बच्चे हुए।

कार्ल्स मार्क्स की शिक्षा

कार्ल्स मार्क्स बचपन में पढ़ाई में बहुत ज्यादा होश्यार नहीं थे, बल्कि वे एक मीडियम दर्जे के छात्र थे। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई घर पर रहकर ही की थी।

इसके बाद उन्होने ट्रायर के जेस्युट हाईस्कूल में रहकर अपनी स्कूल पढ़ाई की। फिर दर्शन और साहित्य की पढ़ाई के लिए बॉन यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया था।

कार्ल मार्क्स ने लेटिन और फ्रेंच भाषा में अपनी कमांड काफी अच्छी कर ली थी। इसके बाद उन्होंने रशियन, डच, इटेलियन, स्पेनिश, स्कनडीनेवियन और इंग्लिश समेत तमाम भाषाओं का ज्ञान भी प्राप्त कर लिया था।

हालांकि इस दौरान अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। वहीं इसी यूनिवर्सिटी के क्लब में शामिल होने के दौरान उनकी दिलचस्पी राजनीति में बढ़ी।

इसके बाद कार्ल्स मार्क्स ने अपने पिता के कहने पर बर्लिन यूनिवर्सिटी में फिलोसफी और लॉ की पढ़ाई की। 1841 में मार्क्स ने जेना यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की।

पत्रकार के रुप में कार्ल्स मार्क्स ने की करियर की शुरुआत

1842 में कार्ल मार्क्स ने पत्रकारिता करना शुरु कर दिया और फिर उन्होंने रहेइन्स्चे ज़ितुंग नाम के न्यूजपेपर में एडिटर के तौर पर काम किया इसमें करीब 1 साल तक काम करने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और वे पेरिस चले गए।

इसके बाद पेरिस में एर्नोल्ड र्युज के साथ मार्क्स ने जर्मन-फ्रैंच वार्षिक जर्नल शुरु किया, जिसने पेरिस की राजनीति में अपनी मुख्य भूमिका निभाई, हालांकि एर्नोल्ड और मार्क्स के बीच आपसी मतभेद के चलते यह जर्नल ज्यादा दिन तक नहीं चल सका।

इसके बाद मार्क्स ने 1844 में अपने दोस्त फ्राईएड्रीच एंगल्स के साथ मिलकर युवा हैगीलियन ब्रूनो ब्युर के दार्शनिक सिद्धांतों का क्रिटिसिज्म का काम करना शुरु कर दिया और फिर इसके बाद एक साथ दोनों ने ”होली फॉमिली’ नाम के पब्लिकेशन शुरु किया।

इसके बाद मार्क्स बेलिज्यम के ब्रुसेल चले गए और यहां वे ”वोर्टवार्ट्स” नाम के न्यूजपेपर के लिए काम करने लगे, यह पेपर बाद में कम्यूनिस्ट लीग बनकर उभरा।

इसके बाद उन्होंने समाजवाद में काम करना शुरु कर दिया और वे हैगीलियन के दर्शनशास्त्र से पूरी तरह अलग हो गए।

आपको बता दें कि हेगेलियन ऐसे छात्रों का समूह था, जो उन दिनों धार्मिक और राजनैतिक स्थितियों पर खुलकर चर्चा करता था और उसकी आलोचना करता था।

कार्ल मार्क्स ने ब्रुसेल में हैगीलियन एंग्ले के साथ काम किया। वे दोनों एक ही विचारधारा के थे। इस दौरान उन्होंने डाई ड्युटश्चे आइडियोलोजी लिखी, जिसमें उन्होंने समाज के ऐतिहासिक ढांचे के बारे में वर्णन किया और यह बताया कि किस तरह आर्थिक रुप से सक्षम वर्ग मजदूर और गरीब बर्ग को नीचा दिखाता आया है।

कम्यूनिस्ट लीग की स्थापना

इस तरह की किताबों के माध्यम ने कार्ल मार्क्स ने मजदूर वर्ग के नेताओं के आंदोलन के साथ बैलेंस करने की कोशिश की। और फिर 1846 में उन्होंने कम्यूनिस्ट कोरेसपोंडेंस कमेटी की नींव रखी।

इसके बाद इंग्लैंड के समाजवादियों ने उनसे प्रेरित होकर कम्यूनिस्ट लीग बनाई और इस दौरान एक संस्था ने मार्क्स और एंगलस से कम्युनिस्ट पार्टी के लिए मेनिफेस्टो लिखने का आग्रह किया।

कार्ल्स मार्क्स ने साल 1847 में दी पोवेरटी पावर्टी ऑफ फिलासफी थिंकर पियर जोसफ प्राउडहोन का जमकर विरोध किया। इस दौरान उन्होंने प्राउडहोन के विचारों पर असहमति जताई और आर्थिक सिस्टम में दो विपरित ध्रुवों के बीच किसी तरह का कोई सामंजस्य नहीं रहने का तर्क दिया।

इसके कुछ दिन बाद 1848 में कम्युनिस्ट पार्टी का मेनिफेस्टो जारी हुआ। इसके बाद 1849 में कार्ल्स मार्क्स को बेल्जियम से निकाल दिया गया, जिसके बाद वे फ्रांस चले गए और वहां उन्होंने समाजवाद की क्रांति शुरु कर दी, लेकिन वहां से भी बाहर निकाल दिया गया, इसके बाद वे लंदन आ गए।

लेकिन यहां पर भी उनके संघर्ष खत्म नहीं हुए उन्हें ब्रिटेन ने नागरिकता देने से मना कर दिया, लेकिन वे अपने जीवन के आखिरी समय तक लंदन में ही रहे। फिर जब जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में क्रांति शुरु हुई, जब मार्क्स राइनलैंड वापस लौट गए।

मार्क्स ने कोलोग्ने में डेमोक्रेटक बोर्जियोसी और वर्किंग क्लास के बीच गठबंधन की नीति की सराहना की और कम्यूनिस्ट के मेनिफेस्टो को नष्ट करने एवं कम्यूनिस्ट लीग को खत्म करने के फैसले को समर्थन दिया।

इसके बाद उन्होंने एक न्यूज पेपर के माध्यम से अपनी नीति समझाने की कोशिश की, और लंदन में जर्मन वर्कर्स एज्यूकेशनल सोसायटी की मद्द कर कम्यूनिस्ट लीग का हेडक्वार्टर शुरु किया, लेकिन वे पत्रकार के तौर पर भी काम करते रहे। इसके बात कार्ल मार्क्सन ने कैपिटिलज्म और इकनॉमिक की थ्योरी में अपना ध्यान केन्द्रित किया।

कार्ल्स मार्क्स की प्रमुख रचनाएं

कार्ल्स मार्क्स ने साल 1848 में ”द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो” की रचना की थी। उनकी यह रचना काफी प्रसिद्ध हुई। यही नहीं उनकी इस रचना को विश्व की सबसे प्रभावशाली राजनीतिक पांडुलिपियों में से एक माना गया है।

उनकी यह रचना फ्रेंच में पब्लिश हुई थी, जिसका अंग्रेजी में भी अनुवाद भी हुआ था, इसे चार भागों में ”कॉमिक बुक” के रुप में पब्लिश किया गया था।

इसके अलावा उनके द्धारा लिखी गई रचना दास कैपिटल भी काफी प्रसिद्ध हुई। यह उनकी सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तक साबित हुई, यह कुल तीन खंडों वाली रचना थी, इस किताब का अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच और रुसी में अनुवाद किया गया था। आपको बता दें कि इस पुस्तक के शेष भाग मार्क्स की मौत के बाद एंजेल्स ने संपादित करके पब्लिश किए थे।

मार्क्स की अन्य रचनाएं

  • द सिविल वॉर इन फ्रैंस
  • इनऑर्गेरल एड्रेस टू द इंटरनेशनल वर्किंग मैन एसोसिएशन
  • द क्रिटिक्यू ऑफ पॉलिटिकल इकॉनोमी
  • द पॉवर्टी ऑफ फिलोसिफी (1847),
  • द गोथा प्रोग्राम,
  • द जर्मन आइडियोलॉजी
  • क्लास-स्ट्रर्गल इन फाइनेंस
  • द होलली फैमिली

कार्ल मार्क्स की का निधन

कार्ल मार्क्स के जीवन के आखिरी दिनों में उन्हें गंभीर बीमारियों ने घेर लिया था, वहीं 1881 में पत्नी की मौत के बात वे काफी उदास रहने लगे थे इसी उदासीनता के चलते उनकी बीमारी भी रिकवर नहीं हो सकी, जिसके चलते 14 मार्च, 1883 में लंदन में उनकी मृत्यु हो गई।

कार्ल मार्क्स के अनमोल विचार

  • शांति का अर्थ साम्यवाद के विरोध का नहीं होना है।
  • दुनिया के मजदूरों एकजुट हो जाओ, तुम्हारे पास खोने को कुछ भी नहीं है,सिवाय अपनी जंजीरों के।
  • सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले स्थान से मापी जा सकती है।
  • धर्म मानव मस्तिष्क जो न समझ सके उससे निपटने की नपुंसकता है।
  • ज़रुरत तब तक अंधी होती है जब तक उसे होश न आ जाये, आज़ादी ज़रुरत की चेतना होती है।

उदाहरण 3. कार्ल मार्क्स की जीवनी – Biography of Karl Marx in Hindi

कार्ल मार्क्स (Karl Marx in Hindi) का जन्म वर्ष 5 मई, 1818 में ट्रायर, जर्मनी में हुआ था। उनका पूरा नाम “कार्ल हेनरिक मार्क्स” था। कार्ल मार्क्स का परिवार यहूदी था।

उनके पिता का नाम हेनरिक मार्क्स था जो पेशे से वकील थे। पिता ने कार्ल के जन्म से पहले ईसाई धर्म कबूल कर लिया था। कार्ल मार्क्स को “कम्युनिस्ट विचारधारा” का जनक भी माना जाता है। कार्ल मार्क्स की विचारधारा क्रांतिकारी थी। शासक वर्ग के विरुद्ध उन्होंने कई आंदोलन किये थे।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा ट्रायर के जिम्नेजियम नामक स्कूल में हुई थी। कार्ल मार्क्स ने बर्लिन विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की थी। वर्ष 1835 में उन्होंने बॉन विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया जहां पर उन्होंने कानून का अध्ययन किया था। कार्ल मार्क्स का विवाह वॉन वेस्टफेलन के साथ हुआ था जिनसे उन्हें 3 जीवित संताने थी।

जर्मनी में उन्होंने सरकार के विरुद्ध आवाज उठाई जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा था। सरकार के खिलाफ उग्र क्रांतिकारी विचारों के कारण उन्हें जर्मनी से निष्कासित कर दिया गया। निष्कासन के बाद कार्ल मार्क्स फ्रांस आ गए।

फ्रांस में उनकी मुलाकात फ्रेडरिक एंजिल्स से हुई जिनके साथ मिलकर उन्होंने फ्रांस में भी सामजवाद की क्रांति लाने का कार्य किया। परन्तु यहां से भी उन्हें निष्कासित कर दिया गया। वर्ष 1849 में कार्ल मार्क्स लंदन आ गए, यही पर उन्होंने बाकि का जीवन व्यतीत किया था।

लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है – कार्ल मार्क्स

मार्क्सवाद क्या है?

कार्ल मार्क्स (Karl Marx) के सिद्धांतों को मार्क्सवाद कहा जाता है। उन्होंने दर्शन, विज्ञान, राजनीति, अर्थशास्त्र इत्यादि पर अपने विचार बताये थे। उनके विचारों को मार्क्सवाद और इन विचारों का समर्थन करने वाला मार्क्सवादी कहलाता है। उन्होंने अमीर और गरीब के बीच परिभाषा बताई थी। उनके अनुसार प्रबल समुदाय काम करने वाले समुदाय पर नियंत्रण रखता है।

समाजवादी कार्ल मार्क्स ने मजदूरों पर पर भी अपने विचार रखे थे। उन्होंने मजदूरों के संदर्भ में बताया कि उनके बीच भेदभाव होता है। कार्ल मार्क्स की पत्रकारिता में भी रुचि थी। उन्होंने राइनिशे जाइटूँग नामक अखबार भी निकाला था जिसमें उन्होंने पूंजीवाद के खिलाफ क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किये थे। इसी कारण जर्मन सरकार ने अखबार पर सेंसरशिप लगा दी थी।

कार्ल मार्क्स का मानना था कि अमीर और गरीब के बीच की खाई कम होनी चाहिए। समानता का अधिकार कार्ल मार्क्स के मुख्य विचार में से एक था। उनके लिखे मुख्य ग्रन्थों में दास कैपिटल, द क्रिटीक ऑफ पोलिटिकल इकॉनमी आते है। वर्ष 1867 में प्रकाशित हुई दास कैपिटल को समाजवाद की बाईबल भी कहते है। कार्ल मार्क्स ने पूंजीवाद के खिलाफ साम्यवादी घोषणा पत्र (कम्युनिस्ट घोषणा पत्र) भी जारी किया था।

कम्युनिस्ट घोषणा पत्र में उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा “दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ” दिया था। पूंजीवाद के नाश का संकल्प भी कार्ल मार्क्स ने अपने इस घोषणा पत्र में दिया था। उन्होंने अपने इस ऐतिहासिक घोषणा पत्र में वर्ग संघर्ष की बात की थी। यही सबसे बड़ा कारण था कि उनकी आलोचना भी होती है।

कार्ल मार्क्स का इतिहास

विश्व में कार्ल मार्क्स (Karl Marx) के विचारों और आंदोलनों का व्यापक प्रभाव हुआ था। कार्ल मार्क्स की आलोचना और सराहना दोनों होती है। कार्ल मार्क्स पूंजीवाद के घौर आलोचक थे। इस कारण उनकी आप आलोचना कर सकते है। परन्तु उनके क्रांतिकारी विचारों और पूंजीवाद के बढ़ते प्रभाव के हानिकारक परिणाम को आप नकार नही सकते है।

मजदूर वर्ग के उत्थान के लिए कार्ल मार्क्स ने हमेशा कार्य किया था। कार्ल मार्क्स के सिध्दांतों और विचारों का अध्ययन आज भी दुनियाभर के विश्वविद्यालयों में किया जाता है।

कार्ल मार्क्स की मृत्यु लंदन में 13 मार्च, 1883 में हुई थी। कार्ल मार्क्स को समाजवाद का जन्मदाता भी कहा जाता है। उन्होंने विश्व को बताया कि पूंजीवाद से अमीर और ज्यादा अमीर हो रहा है जबकि गरीब और ज्यादा गरीब हो रहा है। इसका हल उन्होंने साम्यवाद को बताया था।

उम्मीद करता हु आपको कार्ल मार्क्स की जीवनी (Biography of Karl Marx in Hindi) के बारे में पढ़ के समझ में आ गया होगा अब आप अच्छी तरह से तयारी कर के कही भी कार्ल मार्क्स की जीवनी (Biography of Karl Marx in Hindi) के बारे में बोल सकते है, अगर आपको कुछ पूछना या जनाना चाहते है तो आप हमरे फेसबुक पेज पर जाकर अपना सन्देश भेज सकते है। हम आपके प्रश्न का उत्तर जल्द से जल्द देने की कोशिस करेंगे।

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