अंबेडकर जयंती – Ambedkar Jayanti in Hindi

मुम्बई में निर्मित अंबेडकर स्मारक का उद्घाटन 14 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया। अंबेडकर जयंती पर काँग्रेस के द्वारा 14 अप्रैल 2015 को एक साल के उत्सव को प्रारंभ किया गया (अंबेडकर की जन्म स्थली, मध्य प्रदेश के महू में) जो देश के लिये उनके योगदान की प्रशंसा करने के लिये 125वीं जयंती पर किया गया। भारतीय संविधान को बनाने के साथ ही देश के लिये उनके योगदानों की चर्चा के लिये तथा पूरे साल भर अंबेडकर की विचारधारा के बारे में जागरुकता फैलाने के लिये काँग्रेस ने विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जैसे बैठक, चर्चा, सेमीनार, सम्मेलन आदि।

अंबेडकर जयंती – Ambedkar Jayanti in Hindi

हर वर्ष के तरह इस वर्ष भी 14 अप्रैल के दिन भारत रत्न बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की याद में देशभर में अंबेडकर जयंती के कार्यक्रम को काफी धूम-धाम के साथ मनाया गया। इस महत्वपूर्ण दिन के उत्सव को लेकर काफी पहले से तैयारियां शुरु कर दी गयी थी। इसी के तहत जोधपुर में डॉ भीमराव अंबेडकर की 128वीं जयंती के अवसर पर जोधपुर में बाडी बिल्डिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इसी तरह उत्तरप्रदेश के मऊ में इब्राहिमाबाद स्थित अंबेडकर प्रतिमा के पास 14 अप्रैल को बाबा भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा के युवा एकता मंच के बैनर तले विशाल मानव श्रृंखला का भी आयोजन किया गया।

अंबेडकर जयंती के अवसर पर राजस्थान के भरतपुर जिले में जिला जाटव महासमिति के द्वारा डॉ अंबेडकर जयंती पर तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके साथ ही अंबेडकर जयंती से एक दिन पहले स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का भी आयोजन किया गया और 13 तथा 14 अप्रैल को झांकीयों द्वारा शोभयात्रा निकाली गयी, जिसमें सर्वश्रेष्ठ झांकीयों को पुरस्कृत भी किया गया।

इसके साथ ही मध्यप्रदेश के खंडवा में मध्यप्रदेश अजाक्स संघ, नाजी, जयस व छात्र संघ के संयुक्त तत्वाधान में 14 अप्रैल को डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती पर शोभयात्रा निकाली गयी। जिसका निर्णय बुधवार को टैगोर पार्क में आयोजित की गई बैठक में लिया गया। इसी तरह राजस्थान के खेड़ली में अबेंडकर जयंती के अवसर पर अंबेडकर विचार मंच द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। जिसमें खेड़ली चौक पर स्थित भारत रत्न बाबा साहब की प्रतिमा का माल्यार्पण करके दोपहर में शोभायात्रा भी निकाली गयी और इसके पश्चात शाम में मेधावी छात्र-छात्राओं को सम्मानित भी किया गया।

देश भर में अबेंडकर जयंती को विभिन्न प्रकार की तैयारियां की गई थी। इस अवसर को देखते हुए उत्तर प्रदेश के संभल में भी विशेष तैयारियां की गई। जहां पर अप्रैल को मनाये जाने वाले आंबेडकर जयंती के अवसर पर काफी भव्य शोभायात्रा का आयोजन किया गया। इस दौरान लोगों को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, नारी अधिकार, अंधविश्वास को लेकर संदेश दिया गया। इस कार्यक्रम में कई गावों की झांकिया भी शामिल होगीं और शोभात्रा में डॉ भीमराव अंबेडकर, संत गाडके महाराज, भगवान गौतम बुद्ध, झलकारी बाई, मातादीन जैसे महान व्यक्तियों की झांकियां भी शामिल हुई।

राजस्थान के बाड़मेर में डॉ अबेंडकर की 128वीं जयंती पर सुबह 9 बजे रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। इसके साथ ही राजस्थान के जैसलमेर में अंबेडकर जयंती के अवसर पर दलित अधिकार अभियान कमेटी द्वारा बैठक बुलाई गयी जिसमें यह फैसला लिया गया कि इस वर्ष भारत रत्न बाबा साहब अंबेडकर की जयंती को सामाजिक समरसता दिवस के रुप में मनाया जायेगा। इस समारोह के मुख्य अतिथि कैबिनेट मंत्री सालेह मोहम्मद रहे और अध्क्षता आनंदीलाल गुचिया द्वारा की गयी। इस कार्यक्रम में समाज में भाईचारे तथा प्रेम को बढ़ाने के लिए और आम जनता के अधिकारों को लेकर चर्चा की गयी।

इस अंबेडकर जयंती पर लोगों को रक्तदान द्वारा समझाया गया मानवता का पाठ

14 अप्रैल को बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर जयंती के अवसर पर रविवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इस दौरान लोगों के सुविधाओं का ध्यान रखते हुए यातायात व्यवस्थाओं में बदलाव किया गया था ताकि लोगों को जाम का सामना ना करना पड़े। इस दिन लखनऊ के राजकीय चिकीत्सालय में रक्तदान शिविर और जन-जागरुकता कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया।

जिसमें लोगों को यह बात समझाने का प्रयास किया गया कि जब हम रक्त की आवश्यकता होने पर रक्त देने वाले की जाति और धर्म का पता नही करते तो फिर छोटी-छोटी बातों को लेकर जातिगत विवाद क्यों करते है। इसी तरह अंबेडकर पार्क में भी विशाल शोभायात्रा का भी आयोजन किया गया। जिसकी शुरुआत बाबा साहब की प्रतिमा का माल्यार्पण करके तथा मोमबत्ती जलाकर की गयी। इस कार्यक्रम में भारी संख्या में लोग इकठ्ठा हुए और शोभयात्रा में बाबा साहब के अलावा महात्मा बुद्ध तथा सावित्री बाई फुले की भी झांकी निकाली गयी।

अंबेडकर जयंती/डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म दिवस

भारत के लोगों के लिये डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म दिवस और उनके योगदान को याद करने के लिये 14 अप्रैल को एक उत्सव से कहीं ज्यादा उत्साह के साथ लोगों के द्वारा अंबेडकर जयंती को मनाया जाता है। उनके स्मरणों को श्रद्धांजलि देने के लिये वर्ष 2015 में ये उनका 124 वाँ जन्मदिवस उत्सव होगा। ये भारत के लोगों के लिये एक बड़ा क्षण था जब वर्ष 1891 में उनका जन्म हुआ था।

इस दिन को पूरे भारत वर्ष में सार्वजनिक अवकाश के रुप में घोषित किया गया। नयी दिल्ली, संसद में उनकी मूर्ति पर हर वर्ष भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री (दूसरे राजनैतिक पार्टियों के नेताओं सहित) द्वारा सदा की तरह एक सम्माननीय श्रद्धांजलि दिया गया। अपने घर में उनकी मूर्ति रखने के द्वारा भारतीय लोग एक भगवान की तरह उनकी पूजा करते हैं। इस दिन उनकी मूर्ति को सामने रख लोग परेड करते हैं, वो लोग ढोल बजाकर नृत्य का भी आनन्द लेते हैं।

अंबेडकर जयंती क्यों मनायी जाती है?

भारत के लोगों के लिये उनके विशाल योगदान को याद करने के लिये बहुत ही खुशी से भारत के लोगों द्वारा अंबेडकर जयंती मनायी जाती है। डॉ भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान के पिता थे जिन्होंने भारत के संविधान का ड्रॉफ्ट (प्रारुप) तैयार किया था। वो एक महान मानवाधिकार कार्यकर्ता थे जिनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था।

उन्होंने भारत के निम्न स्तरीय समूह के लोगों की आर्थिक स्थिति को बढ़ाने के साथ ही शिक्षा की जरुरत के लक्ष्य को फैलाने के लिये भारत में वर्ष 1923 में “बहिष्कृत हितकरनी सभा” की स्थापना की थी। इंसानों की समता के नियम के अनुसरण के द्वारा भारतीय समाज को पुनर्निर्माण के साथ ही भारत में जातिवाद को जड़ से हटाने के लक्ष्य के लिये “शिक्षित करना-आंदोलन करना-संगठित करना” के नारे का इस्तेमाल कर लोगों के लिये वो एक सामाजिक आंदोलन चला रहे थे।

अस्पृश्य लोगों के लिये बराबरी के अधिकार की स्थापना के लिये महाराष्ट्र के महाड में वर्ष 1927 में उनके द्वारा एक मार्च का नेतृत्व किया गया था जिन्हें “सार्वजनिक चॉदर झील” के पानी का स्वाद या यहाँ तक की छूने की भी अनुमति नहीं थी। जाति विरोधी आंदोलन, पुजारी विरोधी आंदोलन और मंदिर में प्रवेश आंदोलन जैसे सामाजिक आंदोलनों की शुरुआत करने के लिये भारतीय इतिहास में उन्हें चिन्हित किया जाता है। वास्तविक मानव अधिकार और राजनीतिक न्याय के लिये महाराष्ट्र के नासिक में वर्ष 1930 में उन्होंने मंदिर में प्रवेश के लिये आंदोलन का नेतृत्व किया था।

उन्होंने कहा कि दलित वर्ग के लोगों की सभी समस्याओं को सुलझाने के लिये राजनीतिक शक्ति ही एकमात्र तरीका नहीं है, उन्हें समाज में हर क्षेत्र में बराबर का अधिकार मिलना चाहिये। 1942 में वाइसराय की कार्यकारी परिषद की उनकी सदस्यता के दौरान निम्न वर्ग के लोगों के अधिकारों को बचाने के लिये कानूनी बदलाव बनाने में वो गहराई से शामिल थे।

भारतीय संविधान में राज्य नीति के मूल अधिकारों (सामाजिक आजादी के लिये, निम्न समूह के लोगों के लिये समानता और अस्पृश्यता का जड़ से उन्मूलन) और नीति निदेशक सिद्धांतों (संपत्ति के सही वितरण को सुनिश्चित करने के द्वारा जीवन निर्वाह के हालात में सुधार लाना) को सुरक्षा देने के द्वारा उन्होंने अपना बड़ा योगदान दिया। बुद्ध धर्म के द्वारा अपने जीवन के अंत तक उनकी सामाजिक क्रांति जारी रही। भारतीय समाज के लिये दिये गये उनके महान योगदान के लिये 1990 के अप्रैल महीने में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

अंबेडकर जयंती कैसे मनायी जाती है?

पूरे भारत भर में वाराणसी, दिल्ली सहित दूसरे बड़े शहरों में बेहद जुनून के साथ अंबेडकर जयंती मनायी जाती है। कचहरी क्षेत्र में डॉ अंबेडकर जयंती समारोह समिति के द्वारा डॉ अंबेडकर के जन्मदिवस उत्सव के लिये कार्यक्रम वाराणसी में आयोजित होता है। वो विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करते हैं जैसे चित्रकारी, सामान्य ज्ञान प्रश्न-उत्तर प्रतियोगिता, चर्चा, नृत्य, निबंध लेखन, परिचर्चा, खेल प्रतियोगिता और नाटक जिसके लिये पास के स्कूलों के विद्यार्थीयों सहित कई लोग भाग लेते हैं। इस उत्सव को मनाने के लिये, लखनऊ में भारतीय पत्रकार लोक कल्याण संघ द्वारा हर वर्ष एक बड़ा सेमीनार आयोजित किया जाता है।

वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर बाबा शमशान नाथ मंदिर में तीन दिवसीय लंबा (15 अप्रैल से 17 अप्रैल) उत्सव रखा गया जहाँ नृत्य और संगीत के कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गये थे। सुबह में जूनियर हाई स्कूल और प्राईमरी स्कूल के विद्यार्थियों ने एक प्रभात फेरी बनायी और सेकण्डरी स्कूल के विद्यार्थी इस दिन रैली में भाग लिये। कई जगहों पर, गरीब लोगों के लिये मुफ्त स्वास्थ्य परीक्षण और दवा उपलब्ध कराने के लिये मुफ्त स्वास्थ्य परीक्षण कैंप भी आयोजित किया गया था।

बी.आर.अंबेडकर का योगदान

निम्न वर्ग समूह के लोगों के लिये अस्पृश्यता के सामाजिक मान्यता को मिटाने के लिये उन्होंने काम किया। बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत करने के दौरान उनकी सामाजिक स्थिति को बढ़ाने के लिये समाज में अस्पृश्यों को ऊपर उठाने के लिये उन्होंने विरोध किया।

दलित वर्ग के जातिच्युतता लोगों के कल्याण और उनके सामाजिक-आर्थिक सुधार के लिये अस्पृश्यों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये ‘बहिष्कृत हितकरनी सभा’ कहे जाने वाले एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। “मूक नायक, बहिष्कृत भारत और जनता समरुपता” जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन द्वारा उन्होंने दलित अधिकारों की भी रक्षा की।

उन्होंने एक सक्रिय सार्वजनिक आंदोलन की शुरुआत की और हिन्दू मंदिरों (1930 में कालाराम मंदिर आंदोलन) में प्रवेश के साथ ही जल संसाधनों के लिये अस्पृश्यता को हटाने के लिये 1927 में प्रदर्शन किया। दलित वर्ग के अस्पृश्य लोगों के लिये सीट आरक्षित करने के लिये पूना संधि के द्वारा उन्होंने अलग निर्वाचक मंडल की माँग की।

15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद पहले कानून मंत्री के रुप में सेवा देने के लिये उन्हें काँग्रेस सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया था और 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा के अध्यक्ष के रुप में नियुक्त किये गये जहाँ उन्होंने भारत के नये संविधान का ड्रॉफ्ट तैयार किया जिसे 26 नवंबर 1949 में संवैधानिक सभा द्वारा अंगीकृत किया गया।

भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में इन्होंने एक बड़ी भूमिका निभायी क्योंकि वो एक पेशेवर अर्थशास्त्री थे। अर्थशास्त्र पर अपने तीन सफल अध्ययनशील किताबों जैसे “प्रशासन और ईस्ट इंडिया कंपनी का वित्त, ब्रिटिश इंडिया में प्रान्तीय वित्त के उद्भव और रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और समाधान” के द्वारा हिल्टन यंग कमीशन के लिये अपने विचार देने के बाद 1934 में भारत के रिजर्व बैंक को बनाने में वो सफल हुये।

इन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की योजना में अपनी भूमिका निभायी क्योंकि कि उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री विदेश से हासिल की थी। देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिये औद्योगिकीकरण और कृषि उद्योग की वृद्धि और विकास के लिये लोगों को बढ़ावा दिया। खाद्य सुरक्षा लक्ष्य की प्राप्ति के लिये उन्होंने सरकार को सुझाव दिया था।

अपनी मूलभूत जरुरत के रुप में इन्होंने लोगों को अच्छी शिक्षा, स्वच्छता और समुदायिक स्वास्थ्य के लिये बढ़ावा दिया। इन्होंने भारत की वित्त कमीशन की स्थापना की थी। भारत के जम्मू कश्मीर के लोगों के लिये विशेष दर्जा उपलब्ध कराने के लिये भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 के खिलाफ थे।

अंबेडकर के द्वारा कहा गया कथन

  • प्रगति की मात्रा के द्वारा ही एक समुदाय की प्रगति को मैं मापता हूँ जिसे महिलाओं ने प्राप्त किया है।
  • ज्ञान एक पुरुष के जीवन की जड़ है।
  • सामाजिक नीतिशास्त्र पर आधारित सामाजिक आदर्शों के द्वारा लोग और उनके धर्म को आँकना चाहिये। किसी भी दूसरे आदर्श का कोई मतलब नहीं होगा अगर लोगों के भले के लिये जरुरी अच्छाई धर्म आयोजित होता है।
  • हर पुरुष जो चक्की के सिद्धांत को दोहराता है जैसे एक देश किसी दूसरे देश पर राज्य करने के लिये उपयुक्त नहीं होता को मानना चाहिये कि किसी दूसरे वर्ग पर राज्य करने के लिये एक वर्ग उपयुक्त नहीं होता।
  • लंबे होने के बजाय जीवन अच्छा होना चाहियें।
  • दिमाग की खेती मानव अस्तित्व का सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य होनी चाहिये।
  • मानव नश्वर होता है। वैसे ही विचार होते हैं। एक विचार को फैलाव की जरुरत होती है जिस तरह एक पौधे को पानी की जरुरत होती है। नहीं तो दोनों मुरझा और मर जायेंगे।
  • कोई एक जिसका दिमाग मुक्त नहीं यद्यपि जीवित है, मरने से बेहतर नहीं है।
  • बुद्ध की सीख शाश्वत है, लेकिन उसके बाद भी बुद्ध उसको अचूक घोषित नहीं करते हैं।
  • जैसे पानी की एक बूँद महासागर में मिलते ही अपनी पहचान खो देती है, व्यक्ति समाज में अपने होने का अस्तित्व नहीं खोता है जिसमें वो रहता है। व्यक्ति का जीवन स्वतंत्र होता है। वो अकेले समाज का विकास करने के लिये पैदा नहीं हुआ है, बल्कि अपने विकास के लिये हुआ है।
  • किसी एक के अस्तित्व का प्रमाण है दिमाग की स्वतंत्रता।
  • दिमाग की वास्तविकता वास्तविक स्वतंत्रता है।
  • मैं धर्म को पसंद करता हूँ जो आजादी, समता और भाईचारा सिखाता है।
  • इंसानों के लिये धर्म है ना कि धर्म के लिये इंसान।
  • धर्म मुख्यत: केवल एक सिद्धांत की विषयवस्तु है। ये नियम का मामला नहीं है। जिस पल ये नियमों से बिगड़ता है, एक धर्म होने के नाते ये समाप्त होता है, क्योंकि ये जिम्मेदारियों को मारता है जो सच्चे धार्मिक कानून का एक सार है।
  • व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिये एक वातावरण बनाना धर्म का बुनियादी विचार है।
  • अगर आप ध्यान से पढ़ेंगे, आप देखेंगे कि बौद्ध धर्म कारणों पर आधारित है। इसमें जन्मजात लचीलेपन का तत्व है, जो किसी दूसरे धर्म में नहीं पाया जाता है।
  • एक प्रसिद्ध व्यक्ति से अलग होता है एक महान आदमी जो समाज का नौकर बनने के लिये तैयार होता है।
  • हिन्दू धर्म में, विकास के लिये जमीर, कारण और स्वतंत्र विचार के पास को कोई अवसर नहीं है।
  • पति और पत्नि के बीच का रिश्ता एक सबसे घनिष्ठ मित्र की तरह होनी चाहिये।
  • इसांन के लिये किसी एक के पास कोई सम्मान या आदर नहीं हो सकता जो समाज सुधारक की जगह ले और उसके बाद उस पदवी के तार्किक परिणाम को देखने से मना कर दे, उसे अकेले ही खराब काम का अनुसरण करने दें।
  • एक कठोर वस्तु मिठाई नहीं बना सकता। किसी का भी स्वाद बदल सकता है। लेकिन जहर अमृत में नहीं बदल सकता।
  • एक सफल क्रांति के लिये इतना ही काफी नहीं है कि वहाँ असंतोष हो। जो चाहिये वो गंभीर है और न्याय की आस्था के द्वारा, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों की जरुरत और महत्व।
  • माना कि लंबे समय तक आपने सामाजिक आजादी प्राप्त नहीं की, जो भी स्वतंत्रता आपको कानून के द्वारा आपको उपलब्ध करायी जा रही है उसका आपके लिये कोई लाभ नहीं है।

तथ्य

मीडिया के अनुसार:

“एक खबर है कि महाराष्ट्र सरकार लंदन में डॉ भीमराव अंबेडकर का अंतरराष्ट्रीय स्मारक बनाने के लिये 35 से 40 करोड़ रुपये की कीमत का एक बंग्ला खरीदेगी। ऐसा माना गया है कि, घर में (10, किंग हेनरी रोड एनडबल्यू3 में स्थित) जहाँ डॉ भीमराव अंबेडकर उच्च शिक्षा के दौरान एक बार रुके हुए थे, घर के मालिक के द्वारा नीलामी हुई है। महाराष्ट्र सरकार के द्वारा ये घोषणा की गयी है कि उनके जन्मदिवस पर डॉ भीमराव अंबेडकर के अंतरराष्ट्रीय स्मारक के रुप में इस घर का लोकार्पण होगा”।

“जिले के दलित समुदाय की लंबे समय से चली आ रही माँग को पूरा करने के लिये शहर में एक अंबेडकर भवन का निर्माण करने के लिये बैंगलुरु की राज्य सरकार के द्वारा एक मुख्य योजना भी है। 1.61 एकड़ भूमि पर अंबेडकर भवन बनाने का फैसला किया गया है”।
डॉ भीमराव अंबेडकर के बारे में

डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत (मध्य प्रदेश) के केन्द्रीय प्रांत के महू जिले में एक गरीब महार परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था और माता का नाम भीमाबाई था। इनका निधन 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में हुआ था। भारतीय समाज में अपने दिये महान योगदान के लिये वो लोगों के बीच बाबासाहेब नाम से जाने जाते थे। आधुनिक बौद्धधर्मी आंदोलन लाने के लिये भारत में बुद्ध धर्म के लिये धार्मिक पुनरुत्थानवादी के साथ ही अपने जीवन भर उन्होंने एक विधिवेत्ता, दर्शनशास्त्री, समाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ, इतिहासकार, मनोविज्ञानी और अर्थशास्त्री के रुप में देश सेवा की। वो स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री थे और भारतीय संविधान का ड्रॉफ्ट तैयार किया था।

शुरुआती जीवन

भारत में सामाजिक भेदभाव और जातिवाद को जड़ से हटाने के अभियान के लिये उन्होंने अपने पूरे जीवनभर तक संघर्ष किया। निम्न समूह के लोगों को प्रेरणा देने के लिये उन्होंने खुद से बौद्ध धर्म को अपना लिया था जिसके लिये भारतीय बौद्धधर्मियों के द्वारा एक बोधिसत्व के रुप में उन्हें बताया गया था। उन्होंने अपने बचपन से ही सामाजिक भेदभाव को देखा था जब उन्होंने सरकारी स्कूल में दाखिला लिया था। उन्हें और उनके दोस्तों को उच्च वर्ग के विद्यार्थियों से अलग बैठाया जाता था और शिक्षक उनपर कम ध्यान देते थे। यहाँ तक कि, उन्हें कक्षा में बैठने और पानी को छूने की अनुमति भी नहीं थी। उन्हें उच्च जाति के किसी व्यक्ति के द्वारा दूर से ही पानी दिया जाता था।

शिक्षा

अपने शुरुआती दिनों में उनका उपनाम अंबावेडेकर था, जो उन्हें रत्नागिरी जिले में “अंबावड़े” के अपने गाँव से मिला था, जो बाद में उनके ब्राह्मण शिक्षक, महादेव अंबेडकर के द्वारा अंबेडकर में बदल दिया गया था। उन्होंने 1897 में एकमात्र अस्पृश्य के रुप में बॉम्बे के एलफिनस्टोन हाई स्कूल में दाखिला लिया था। इन्होंने 1906 में 9 वर्ष की रामाबाई से शादी की थी। 1907 में अपनी मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने सफलता पूर्वक दूसरी परीक्षा के लिये कामयाबी हासिल की।

अंबेडकर साहब ने वर्ष 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री हासिल की। बाबा साहेब 3 साल तक हर महीने 11.50 यूरो के बड़ौदा राज्य छाज्ञवृत्ति से पुरस्कृत होने के बाद न्यू यार्क शहर में कोबंबिया विश्वविद्यालय में अपने परास्नातक को पूरा करने के लिये 1913 में अमेरिका चले गये थे। उन्होंने अपनी एमए की परीक्षा 1915 में और अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री 1917 में प्राप्त की। उन्होंने दोबारा से 1921 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स अपनी मास्टर डिग्री और 1923 अर्थशास्त्र में डी.एससी प्राप्त की।