एड्स कैसे होता है हिंदी में जानकारी – AIDS Kaise Hota Hai

वर्तमान समय में विश्व वैज्ञानिक प्रगति के कारण जहां मानव ने कई रोगों पर विजय प्राप्त करने में सफलता पाई है वहीं उसे कुछ नए रोगों से दो चार होना पड़ रहा है एक समय था जब प्लेग ,काली खांसी, क्षय रोग, हैजा, मलेरिया इत्यादि जैसे रोग मौत का  कारण माने जाते थे।  इनमें से किसी रोग का नाम सुनते ही लोगों में भय उत्पन्न हो जाता था।  धीरे-धीरे चिकित्सा क्षेत्र में किए जा रहे हैं अनुसंधानो व खोजों द्वारा चिकित्सा विशेषज्ञों ने इन रोगों का उपचार ढूंढ निकाला है।

एड्स कैसे होता है? AIDS Kaise Hota Hai

बावजूद इसके कई नए रोगों के नाम समाचार पत्रों में पढ़ने में देखने को मिल रहे हैं।  इनमें से कुछ रोग ऐसे भी हैं जिन पर अभी शोध व अनुसंधान चल रहे हैं।  उन्हीं रोगों में एक रोग है एड्स।  एड्स रोग आज पूरे विश्व में एक महामारी का रूप धारण कर चुका है।  आए दिन अखबारों में इस के प्रकोप के कारण में मृत्यु के आंकड़े से पता चलता है|

इसकी जानकारी या अज्ञानता से आंकड़ों में किसी प्रकार की गिरावट नहीं आ रही है।  सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बावजूद इस रोग के रोगियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।  लोगों में इस रोग को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं व उन में भय व्याप्त है।

आज की युवा पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति से ओत प्रोत हो विलासिता पूर्ण जीवन बिताने में विश्वास रखती है जिसके फलस्वरूप ऐसे रोगों को पनपने का अवसर मिल जाता है।  प्रत्येक वर्ष १ दिसंबर को मनाये जाने वाले विश्व एड्स दिवस द्वारा लोगों में इस रोग के प्रति जानकारी दे  कर उचित जीवनयापन की जागरूकता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।

विश्व एड्स दिवस की शुरुआत

प्रत्येक वर्ष १ दिसंबर को मनाये जाने वाले विश्व एड्स दिवस की शुरुआत सन १९८७ से हुई थी जिसे विश्व स्वस्थ्य संगठन से जुड़े २ सदस्य जेम्स डब्ल्यू बुन और थॉमस नेटर ने वैश्विक स्तर पर इस जागरूकता को बढ़ाने के लिए शुरु किया था । इस दिवस को मनाने का मुख्या उद्देश्य लोगों में जागरूकता को बढ़ाना तथा इस बीमारी के प्रति सजग रहना था।

एड्स क्या है तथा इसका प्रभाव ?

दरअसल एड्स के बारे में ज्यादातर लोगों को सही जानकारी ना होने के कारण इस रोग का लोगों में भय व्याप्त है वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार जब किसी व्यक्ति के शरीर में एड्स का विषाणु प्रवेश करता है तो वह व्यक्ति एचआईवी संक्रमित कहलाता है।

उस व्यक्ति के संक्रमित होने के 10 से 15 साल बाद उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे खत्म होनी शुरू हो जाती है। शरीर के अंदर एचआईवी के संक्रमण से रक्त में प्रतिरोधक क्षमता को कायम रखने का काम करने वाली CD4 नामक कोशिकायतें कम होने लगती हैं।

चिकित्सकों के अनुसार एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में इन कोशिकाओं की संख्या प्रति 1 क्यूबिक मिलीलीटर रक्त में कम से कम 1000 होनी चाहिए किन्तु एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के शरीर में संक्रमण के १०-15 साल बाद इनकी संख्या घटकर महज 200 या  इससे नीचे चली  जाती है तो वह व्यक्ति एड्स रोगी कहलाता है। यह अपने आप में कोई रोग नहीं है।

इससे अभी तक किसी की मौत नहीं हुई है।  लेकिन समाज में अधिकांश लोगों का मानना है कि एड्स एक जानलेवा बीमारी है। दरअसल एड्स से पीड़ित व्यक्ति में प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण यदि उसे कोई बीमारी जैसे टी वी ,मलेरिया, उल्टी-दस्त या अन्य कोई बीमारी हो जाती है तो उसके लिए उपचार कारगर नहीं रह जाता क्योंकि उसके शरीर का प्रतिरोधक तंत्र करीब-करीब नष्ट हो चुका होता है।  इसलिए एड्स रोगी के शरीर पर दवाओं का असर नहीं पड़ता और वह मौत के मुंह में चला जाता है।

एड्स का उपचार

अब तक एड्स का ना कोई टीका उपलब्ध है और ना ही कोई प्रभावी दवा ही।  हालाँकि एंटीरेट्रोवायरल दवाएं बाजार में मौजूद है जिनसे एड्स रोगी की आयु थोड़ी बढ़ जाती है। यह दवा रक्त में मौजूद एचआईवी विषाणुओं की संख्या को बढ़ने से रोकती है।  एड्स का विषाणु दो से चार चार से आठ के क्रम में अपने वृद्धि करता है।   यदि कोई महिला एचआईवी संक्रमित है तो उससे उत्पन्न होने वाली संतान के एचआईवी संक्रमित होने की आशंका 40 से 50 फ़ीसदी तक रहती है |

उपसंहार

एड्स के प्रति लोगों में अनेक भ्रांतियां है जैसे की एड्स छूने से फैलता है , परिणामतः रोगी स्वयं को अकेला और बहुत निकृष्ट समझने लगता है मानवता की दृष्टि से ऐसे रोगियों के साथ अलगाववाद की नीति नहीं अपनानी चाहिए।  एड्स के ज्यादा मामले असुरक्षित यौन संबंधों के कारण होते हैं।

एड्स पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार को यौन शिक्षा लागू करने चाहिए लेकिन इस शिक्षा को लागू करने के बावजूद भी ग्रामीणों एवं  अशिक्षित लोगों को इस बारे में जागृत करने और इससे बचाव के उपाय बताने के लिए सरकार को ऐसा सूचना तंत्र विकसित करना होगा जो किसी भी भाषा को जानने वालों को आसानी से समझ आ सके।  लेकिन इसके लिए धर्म गुरुओं और नेताओं को आगे आना होगा तभी विश्व स्तर पर चलाये जाने वाले इस अभियान में सफलता मिल पायेगी।