कोरल रीफ पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव पर निबंध – Essay on Effects of Global Warming on Coral Reefs in Hindi

इस पोस्ट में कोरल रीफ पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव पर निबंध (Essay on Effects of Global Warming on Coral Reefs in Hindi) के बारे में चर्चा करेंगे। प्लास्टिक बैगों का उपयोग कई कार्यो के लिये किया जाता है। पृथ्वी का तापमान लगतार बढ़ता जा रहा है, जिससे भारी मात्रा में प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) की घटनाए हो रही है।

मूंगो (कोरलो) द्वारा इतने तेज गति से हो रहे ब्लीचिंग का सामना नही किया जा सकता है, जिससे यह ब्लीचिंग की समस्या उनके अस्तित्व के लिए एक गंभीर संकट बन गयी है। ग्लोबल वार्मिंग हर एक मनुष्य, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, महासागर और हमारे पृथ्वी के वायुमंडल स्तर को भी प्रभावित करता है। इस प्रकार से जलवायु परिवर्तन प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) की इस समस्या का प्रमुख कारण बन गया है।

उदाहरण 1. कोरल रीफ पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव पर निबंध – Essay on Effects of Global Warming on Coral Reefs in Hindi

कोरल रीफ हजारो वर्षो से जलवायु में हो रहे परिवर्तन के अनुरुप खुद को ढालते आ रहे है, पर आने वाले समय में वह खुद को तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन से नही बचा पाएंगे। विश्व भर में कोरल रीफ का लगभग 25 फीसदी क्षतिग्रस्त हो चुका है और उनमे कोई सुधार नही किया जा सकता है तथा बाकी के दो-तिहाई पे भी गंभीर संकट मंडरा रहा है।

कोरल रीफ विनाशीकरण का तात्पर्य महासागरो के पानी के गिरते जल स्तर के कारण कोरल रीफो की भारी मात्रा में होने वाले विनाश से है। कोरल रीफों के विनाश के कई कारण है जैसे कि प्रदूषण, गैरकानूनी मछली पकड़ने के तरीके, तूफान, भूकंप परन्तु इसका मुख्य कारण है,

जलवायु परिवर्तन जिसके वजह से समुद्र के पानी का तापमान बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण ही ग्रेट बैरियर के लगभग आधे कोरल रीफो का विनाश हो चुका है।

मूंगा एक जीवित जीव है, जोकि किसी अन्य पेड़-पौधे, पशु-पक्षियो या अन्य प्रजातियो कि तरह समय के साथ कमजोर होते जाते है। मूंगे (कोरल) पानी का अत्यधिक तापमान सहन नही कर सकते है, क्योंकि पानी के अत्यधिक तापमान के कारण उनके अंदर स्थित उन्हे रंग प्रदान करने वाले सूक्ष्मजीव नष्ट होने लगते है।

कोरल रीफ के क्षतिग्रस्त होने के लिए जिम्मेदार कारक

निचले स्तर का ज्वार, प्रदूषण और अन्य कुछ कारको के अलावा ग्लोबल वार्मिंग प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) का मुख्य कारण है। यदि ऐसा ही रहा तो भविष्य में इनके और तेजी से विरंजित होने के आसार है।

इस तरह की विरंजन प्रक्रिया के कारण पहले से ही क्षतिग्रस्त कोरलो पर और भी ज्यादे बुरा प्रभाव पड़ेगा, जोकि पूरे कोरल पारिस्थितिकी तंत्र के लिये काफी हानिकारक होगा। कोरल वैसे ही काफी नाजुक तथा कमजोर होते है, जिससे उनमे कई बिमारियों की संभावना रहता है और अगर उन पर इसी तरह से प्रभाव पड़ता रहा तो जल्द ही वह विलुप्त हो जाएंगे।

प्लास्टिक और दूसरे अपशिष्ट पदार्थ पानी में फेंक दिये जाते है, जिससे यह कोरलो के किनारे जमा हो जाते है और इस वजह से यह कोरलो के मृत्यु का कारण बनते है।

बढ़ता हुआ पर्यटन भी कोरल रीफो के विनाश का कारण है। मनोरंजन गतिविधियों के लिये उपयोग होने वाले नाव और पानी के जहाज भी कोरल रीफो के क्षतिग्रस्त होने की एक वजह हैं। इसके अलावा अन्य पर्यटन मनोरंजक गतिविधियां जैसे कि स्नॉर्कलिंग और डाईविंग द्वारा भी इन संवेदनशील कोरल रीफो को नुकसान पंहुचता है।

जैसा कि हम जानते है कि समुद्री तलछट समुद्र में जमीन से बहकर आए अघुलनशील कणों से बना है। बढ़ते मानवीय औपनिवेशीकरण और अन्य गतिविधियां जैसे कि खेती, निर्माण तथा खनन के द्वारा कई प्रकार के कण समुद्र में बहकर आ जाते है। ये कण तलछट को जाम कर देते है जिससे मूंगा चट्टानो को पोषण और सूर्य का प्रकाश मिलना बंद हो जाता है, जिससे कि उनका विकास रुक जाता है।

निष्कर्ष

वैसे तो मूंगा चट्टानो (कोरल रीफ) के विनाश के कई कारण है पर इसका सबसे मुख्य कारण हैं जलवायु परिवर्तन और महासागरो का बढ़ता तापमान है। विशाल मात्रा मूंगा चट्टानो में हो रही गिरावट को अब और नकारा नही जा सकता, इसके लिए हमें अब ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। जिससे इस समस्या को और विकराल होने से रोका जा सके।

उदाहरण 2. कोरल रीफ पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव पर निबंध – Essay on Effects of Global Warming on Coral Reefs in Hindi

ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ पृथ्वी के जलवायु के तापमान में हो रही निरंतर वृद्धि से है। मानवीय गतिविधियों के द्वारा उत्पन्न होने वाली ग्रीन हाउस गैसो से पृथ्वी के जलवायु और महासागरो के तापामान में तेजी से वृद्धि हो रही है।

कोरल रीफ का क्षय

कोरल रीफ (मूंगा चट्टान) एक बहुत ही जटिल संरचानओं का सक्रिय केंद्र है। यह जैव विविधता से परिपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा है। इनकी उपस्थिति कई सारे समुद्री जावो के जीवन के लिए बहुत ही महात्वपूर्ण है, परन्तु ग्लोबल वार्मिंग के द्वारा महासागरो के तापमान में होने वाली वृद्धि तथा कार्बन डाइआक्साइड के स्तर में होने वाली वृद्धि के कारण कोरल रीफो को रंग प्रदान करने वाले और स्वास्थ्य रखने वाले शैवाल या तो टूटते जा रहे है या तो वह मृत होते जा रहे है,

जिसके कारणवश प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) की समस्या भी उत्पन्न होते जा रही है। समुद्र किनारे बढ़ते निर्माण, ओवेरफिशिंग तथा प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) के कारण पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर संकट मंडराने लगा है। पिछले कुछ दशको में ग्लोबल वार्मिग और अन्य कारणो से पूरे विश्व में कोरल रीफ पारिस्थितिकी तंत्र में भारी मात्रा में कमी होते जा रही है।

यह मूंगा चट्टानो से बनी पत्थरनुमा संरचनाएं कैल्शियम कार्बोनेट और चट्टानो का निर्माण करने वाली मूंगा संरचनाओं का मिश्रण होती है। इसके अलावा क्लैम्स, ऑयस्टर और घोंघे जैसे जीवो के कवचो में भी कैल्शियम का तत्व पाया जाता है। समुद्र के पानी में उपस्थित को अपने कवचो के निर्माण के लिए कैल्शियम की आवश्यकता होती है।

शोधों द्वारा पता चला है कि रीफों में लगभग 52-57 प्रतिशत लार्वा का क्षय पानी का pH स्तर कम होने के कारण होता है। हाल के कुछ शोधो से पता चला है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को जल्द ही रोका नही गया तो बढ़ते तापमान के वजह से विश्व धरोहर के श्रेणी में आने वाले सभी रीफ नष्ट हो जाएंगे।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण महासागरो का तापमान बढ़ता जा रहा है, जिससे प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) की समस्या तेजी से बढ़ रही है, इसी तरह महासागरो के बढ़ते तापमान के ही कारण कोरलो में अन्य कई समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं। इसी तरह स्टैगहोर्न जैसे कोरल रीफ जोकि काफी संवेदनशील होते है वह कोरल ब्लीचींग जैसी घटनाओं से सबसे ज्यादे प्रभावित होते है।

कोरल रीफ पारिस्थितिकी तंत्र ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते समुद्र स्तर से भी प्रभावित होता है, इसके साथ ही महासागरीय अम्लीकरण भी कोरल रीफ पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है।

समुद्री पानी का बढ़ता खारापन भी वैश्विक हाइड्रोलाजीकल चक्र को प्रभावित करता है। इसके साथ ही वर्षा तथा तूफान की बढ़ती तीव्रता और कम होते अंतराल ने भी तटीय जल के गुणवत्ता को प्रभावित किया है। तूफान की बढ़ती तीव्रता और समुद्र के बढ़ते स्तर के वजह से समुद्री लहरे पहले के अपेक्षा और तीव्र हो गयी है, जिससे तटीय निर्माण और कोरल पारिस्थितिकी तंत्र, समुद्र तल और मैनग्रुव पर बुरा प्रभाव पड़ा है।

निष्कर्ष

ग्लोबल वार्मिंग द्वारा महासागरो में काफी तेज पैमाने पर कई तरह के रासायनिक और भौतिक परिवर्तन होते रहते है, जिससे कई तरह के समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और जीवो के ऊपर आधारभूत स्तर पर परिवर्तन देखने को मिले है। इसके साथ ही महासागरो के बढ़ते तापमान के वजह से भी कोरल रीफो पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है। मानवो के ही तरह मूंगा चट्टाने (कोरल रीफ) भी अत्यधिक दबाव और तनाव नही सहन कर सकते है

ग्लोबल वार्मिंग के कारण मनुष्य और मूंगा (कोरल) दोनो ही बुरी तरह से प्रभावित हुए है, इसिलिए वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन को रोकने की आवश्यकता है। जिससे इस संकट को और आगे बढ़ने से रोका जा सके।

उदाहरण 3. कोरल रीफ पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव पर निबंध – Essay on Effects of Global Warming on Coral Reefs in Hindi

ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का तापमान बढ़ता जा रहा है, जिससे ग्रेट बैरियर कोरल रीफ के साथ ही पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। तापमान पूरे समुद्री जैव विविधता के विकास और वितरण में काफी अहम योगदान निभाता है, इसका मूंगा चट्टान (कोरल रीफ) के निर्माण और वृद्धि में काफी अहम योगदान है।

अन्य समुद्री जीवो के तरह ही मूंगा चट्टाने (कोरल रीफ) भी बढ़ती है और एक सामान्य तापमान दर के हिसाब से खुद को अनुकूलित करती है। जब तापमान सामान्य से ज्यादे बढ़ जाता है तो उष्मा दबाव के कारण इनके भीतर के शैवाल नष्ट हो जाते है। इसी बढ़ते दबाव के कारण प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) की समस्या उत्पन्न होती है, जिससे अंत में उनकी मृत्यु हो जाती है।

कोरल रीफ के उपर बढ़ते तापमान के कारण होने वाले प्रभावो के विषय में नीचे बताया गया है।

  • समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) की घटनाओं की तेजी और समयातंराल में भी तेजी से वृद्धि होती जा रहा है। समुद्र के तापमान बढ़ने से कोरल संबंधित विकारो में भी वृद्धि हुई है।
  • महासागरो के बढ़ते तापमान के वजह से बर्फो के पिघलने में भयंकर रुप से वृद्धि हुई है, जिससे वैश्विक समुद्री स्तर में भी तेजी से वृद्धि हुई होता है, जिसके कारण कोरल रीफ प्रभावित होते है। इसके साथ ही बढ़ते समुद्र स्तर के वजह से कोरलो में अवसादन की प्रक्रिया बढ़ जाती है, जिसके कारणवश तटरेखा क्षरण के कारण मूंगा चट्टाने (कोरल रीफ) क्षतिग्रस्त हो जाते है।
  • उष्णकटिबंधीय तूफान भी कोरल रीफ परिस्थितिकी तंत्र को काफी बुरी तरीके से नुकसान पंहुचाता है, जिससे रीफ की संरचनाए काफी बुरी तरीके से प्रभावित होती है और तेज धाराओ से अवसादन की प्रकिया भी तेज हो जाती है।
  • महासागरीय धाराए तापमान, हवा, वर्षा और पानी की लवणता तथा ग्लोबल वार्मिंग के द्वारा प्रभावित होती है। इसके द्वारा तापमान और लार्वा के बदलाव तथा जहरीले तत्वो के महासागर के पानी में मिल जाने के कारण कोरल रीफ जैसे जीवो पर उष्मीय रुप से बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • ब्लीच्ड कोरलो के संक्रमित तथा मृत्यु दर अधिक होने, वृद्धि में कमी के साथ ही प्रजनन क्षमता में कमी होने की भी ज्यादे संभावना रहती है। अधिकांश कोरलो में हो रहे इस बदलाव के वजह से उन प्रजातियो पर संकट उत्पनन हो जाता है जो अपने भोजन, आश्रय और आवास के लिए इन पर निर्भर होते है। जब कोरल प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) के कारण मृत हो जाते है। तब कोरल समुदायो के रचना में परिवर्तन होने लगता है, जिसके फलस्वरुप जैव विविधिता में भी कमी हो जाती है।
  • महासागरीय अम्लीकरण कोरलो के वृद्धि तथा ठोसीकरण (कैल्शिफाय) को प्रभावित करते है। जिसके वजह से कोरल अधिक नाजुक और कम प्रतिरोधी हो जाते है, जिससे उनके जीवीत बचे रहने की संभवना कम हो जाती है। समुद्रो में बढ़ते रासायनिक प्रदूषण के कारण कोरलो के निवास दुर्लभ और कम उपयुक्त होते जा रहे है। इसके साथ ही जब कभी-कभी कोरलो की मृत्यु हो जाती है तो उनका स्थान नान- कैल्सिफिइंग जीवो द्वारा ले लिया जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण कोरल रीफो के व्यवस्था प्रणाली बुरे तरीके से प्रभावित हुई है कोरल रीफ पारिस्थितिक तंत्र का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार से इन समस्याओं के प्रति अपनी क्षमता विकसित करते है।

कोरल रीफ के रक्षा के उपाय

इन बताए गये कुछ तरीको द्वारा हम वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन को रोक सकते है तथा कोरल रीफो को और अधिक क्षय होने से रोक सकते है।

  • रिड्यूस, रीसायकल, रीयूज अर्थात पर्यावरण को हानि पहुचाने वाली वस्तुओं का कम उपयोग करे, वस्तुओं को रीसायकल करे, वस्तुओं का अधिक से अधिक पुनरुपयोग करे।
  • उर्जा के बचत वाले बल्बो और उत्पादो का उपयोग करना।
  • जितना हो सके कम प्रिंट करे, उसके जगह ज्यादे से ज्यादे डाउनलोड करे।
  • घर का कचरा बाहर ना फेंके और रासायनिक कचरा नालियो में ना बहाए।
  • बीचो और समुद्री किनारो की साफ-सफाई के अभियान में हिस्सा ले।

बढ़ता हुआ तापमान कोरल रीफ और समुद्री जावो के लिए एक गंभीर संकट बन गया है। समुद्रो के तेजी से बढ़ते स्तर के कारण तूफानो और बाढ़ो में भी वृद्धि हुई है, जिससे कोरल रीफ के साथ ही पूरे समुद्री जीवन पर संकट खड़ा हो गया है।

इसके साथ ही महासागरो के पानी के तेजी से बढ़ते तापमान को भी कम करने की आवश्यकता है, क्योंकि इस बढ़ते तापमान के कारण पहले ही कोरल रीफो पर काफी पर पहले से ही गंभीर संकट मंडरा रहा है। महासागरो के रक्षा के द्वारा ही हम इस संकट से निपट सकते है और कोरल रीफो का भविष्य सुरक्षित कर सकते है।

उदाहरण 4. कोरल रीफ पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव पर निबंध – Essay on Effects of Global Warming on Coral Reefs in Hindi

ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ पृथ्वी के जलवायु के बढ़ते औसत तापमान से है। वायुमंडल में ग्रीनहाअस गैसो के उत्सर्जन के द्वारा पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। जिसके कारण से महासागरो का तापमान बढ़ता जा रहा है जोकि प्रत्यक्ष रुप से मूंगा चट्टानो (कोरल रीफ) को प्रभावित करता है।

कोरल रीफ

कोरल रीफो द्वारा समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे ज्यादे मात्रा में जैव विविधता को संरक्षण प्रदान किया जाता है। जिससे पूरे विश्व भर में लगभग 500 मिलीयन लोगो को लाभ मिलता है। इनके द्वारा लगभग एक चौथाई जलीय जीवो का बी समावेश किया जाता है।

इसके अलावा रीफो द्वारा विस्तृत श्रृंखला में भोजन, पर्यटन व्यवस्था सहयोग और बाढ़ो से सुरक्षा प्रदान की जाती है। कोरलो के खत्म होने से अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य संबंधित और समाजिक रुप से कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होंगी।

पर्यावरण के अनुरुप कोरल रीफ समुद्र में उतने ही महत्वपूर्ण है जितने की भूमि पर वृक्ष, जिसमे कि उनके शैवाल द्वारा किए गए प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम से कोरलो द्वारा उष्णकटबंधीय भोजन श्रृंखला में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया जाता है। इसके अलावा रीफो द्वारा 25 प्रतिशत मछलियों के साथ ही 2 मिलियन से अधिक समुद्री जीवो को आश्रय प्रदान किया जाता है, अगर समुद्र के यह पेड़ ब्लीचींग के कारण खत्म हो गए तो धीरे-धीरे उनपे निर्भर हर एक चीज खत्म हो जाएगी।

विश्व भर में कोरल रीफ पर ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले प्रभाव

कोरल रीफ पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी पर सबसे ज्यादे खतरे के श्रेणी में आने वाले पारिस्थितिकी तंत्रो में से एक है। इसके लिए सबसे ज्यादे जिम्मेदार जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी दोहरी विकराल समस्याओं का दबाव है।

कोरल रीफ की समस्या संकट की एक चेतावनी है, जो यह बाताती है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग की इस समस्या का हल नही ढूढा गया, तो आने वाले समय में डेल्टा जैसी कम संवेदनशील नदी प्रणाली का क्या हाल होगा यह सोचना भी मुश्किल है। यदि इस बढ़ते हुए तापमान को नही रोका गया तो इसका दुष्प्रभाव अन्य प्राकृतिक तंत्रो तक पहुंचकर उनके पतन का कारण बनेगा।

पिछले कुछ वर्षो में दुनियाभर में काफी बड़े स्तर पर कोरल रीफ की समस्याएं उत्पन्न हो गई है, जिसमें बढ़ते तापमान के कारण प्रवाल विरंजन (कोरल ब्लीचींग) जैसी समस्याएं आम हो गयी है। वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन के कारण वैश्विक सतह का तापमान में वृद्धि हुई है, जिसके कारण लगातार रुप से प्रवाल विरंजन की घटनाए हो रही है, जिससे कोरल लगातार सफेद होते जा रहे है।

अगर इसी प्रकार से कोरलो का लम्बे समय तक प्रवाल विरंजन होता रहा तो जल्द ही वह समाप्ती के कगार पर पहुंच जायेंगे। अस्ट्रेलिया तथा अमेरिका के हवाई आईलैंड के ग्रेट बैरियर कोरल रीफ इस विरंजन (ब्लीचींग) की प्रक्रिया से सबसे बुरी तरीके से प्रभावित हुए है, जिनसे उनपर भारी रुप से विनाशकारी प्रभाव पड़े है। आकड़े बताते है कि ग्रेट बैरियर रीफ के विरंजन के कारण 2016 और 2017 में लगभग 50 प्रतिशत कोरल नष्ट हो गये।

सिर्फ ग्रेट बैरियर रीफ ही नही बल्कि की पूरे विश्व भर के विभिन्न महासागरो के कोरल बड़े स्तर पर क्षतिग्रस्त हो चुके है। इसके साथ ही पूरे विश्व में काफी तेजी से तापमान बढ़ रहा है और जब धीरे-धीरे महासागरो का तापमान बढ़ता है तब एल नीनो जैसी समस्या उत्पन्न होती है।

इस तरह की समस्या तब उत्पन्न होती है जब प्रशांत महासागर में पानी गर्म होकर केंद्रित हो जाता है। पिछले कुछ समय में हिन्द महासागर और कैरिबियन महासागर के तापमान में भी काफी तेजी से वृद्धि है। इन्ही प्रभावो के कारण हिन्द महासागर के पश्चिमि क्षेत्र के लगभग 50 प्रतिशत कोरल नष्ट हो चुके है।

इस विषय की सबसे बड़ी समस्या यह है कि कोरल ग्लोबल वार्मिंग के द्वारा इतने तेजी से होने वाले विरंजन (ब्लीचींग) की घटनाओं को झेल नही सकते हैं और यदि ग्लोबल वार्मिंग का तापमान ऐसे ही तेजी से बढ़ता रहा तो भविष्य में स्थिति और खराब हो जाएगी।

यूनेस्को के अनुमान द्वारा पता चला है कि अगर हम इसी तरह से वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसो का उत्सर्जन करते रहेंगे तो जल्द ही विश्वभर में कोरल रीफ के 29 रीफ के स्थान इस शताब्दी के अंत तक विलुप्त हो जायेंगे।

निष्कर्ष

यह बाताने की जरुरत नही है कि कोरल रीफ के विलुप्त हो जाने के कारण पूरे पर्यावरण तंत्र पर प्रतिकूल परिणाम देखने को मिलेंगे। विश्वभर में औसत तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस कम करके तथा इस तापमान को नियंत्रित करके ही कोरल रीफ की सुरक्षा की जा सकती है। इसके साथ ही हमे स्थानीय स्तर पर प्रदूषण और अनियंत्रित रुप से मछली पकड़ने के तरीको से भी निपटने की आवश्यकता है।

आर्थिक प्रणाली को तेजी से बढ़ाते हुए परिपत्र आर्थिक प्रणाली के तरफ ले जाने के साथ ही ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन को भी कम करने की आवश्यकता है, जिससे कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम किया जा सके। कोरल रीफ के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए यह काफी महत्वपूर्ण है कि हमारे द्वारा उनके रखरखाव और संरक्षण में ज्यादे से ज्यादे निवेश किया जाये, तभी इस समस्या पर काबू किया जा सकता है।

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