राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस – National Pollution Control Day in Hindi

पर्यावरण प्रदूषण आज संसार की जटिलतम समस्याओं में से एक है।  ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि का अनुपम वरदान दिया है।  मनुष्य ने उसी बुद्धि के प्रयोग से अनेकानेक चमत्कार कर दिखाए। ऊंचे ऊंचे पर्वतों को काटकर दुर्गम रास्तों को गमनयोग्य बना दिया।  विशाल सागर को पार करने के साधन जुटा लिए। आकाश की ऊंचाइयों को छू लिया। नदियों की दिशाएं बदल दी इत्यादि।

राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस – National Pollution Control Day in Hindi

अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए हर युग में मानव प्रयत्नशील रहा है किंतु आज का मानव जिस दिशा की ओर बढ़ रहा है वह अंततः हमारा सभ्यता को एक ऐसे खायीं में धकेलने वाली है जहां उसका निशान तो रह जाएगा मगर नाम मिट जाएगा।  झूठी शान शौकत का दास होता जा रहा कलयुगी मानव मशीनी जिंदगी को ही जिंदगी की सच्चाई समझने लगा है जिसका परिणाम सामने है। नित नयी खुलती जा रही है फैक्ट्रियां, जहर उगलती फैक्ट्रियां , गगनचुम्बी फैक्ट्रियां जहा एक ओर हमें सुविधाओं से संपन्न कर रही हैं वही दूसरी ओर प्रदूषण की अनवरत परतों में समेट रही हैं। प्रत्येक वर्ष 2 दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस को मना कर लोगों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए जागरूक किया जाता है।

राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस का आरम्भ

भारत में हुई विभिन्न त्रासदियों में से सबसे बड़ी त्रासदी भोपाल गैस त्रासदी जो 2 और 3 दिसंबर वर्ष 1984 की रात को हुई थी उस त्रासदी में शिकार हुए हज़ारों लोगों की याद में प्रत्येक वर्ष २ दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य औद्योगिक आपदा के उचित प्रबंधन एवं भविष्य में ऐसी आपदा से नियंत्रण के लिए लोगों में जागरूकता को फ़ैलाने तथा प्रतिदिन बढ़ने वाले प्रदूषण को रोकने के प्रयास के लिए जागरूकता को बढ़ाना है। इस दिन उस त्रासदी में जान गवाने वाले लोगों को श्रद्धांजलि  देने के लिए विशेष सभा का आयोजन होता है। साथ ही साथ समाज के नागरिकों को विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा प्रदूषण नियंत्रण के लिए जागरूक भी किया जाता है।

प्रदूषण के कारण

विज्ञान के चमत्कारों को नकारा नहीं जा सकता। उसके वरदान भी असंख्य है किंतु महत्वाकांक्षी मानव के जिज्ञासा एवं पिपासा का अंत नहीं है और यही महत्वाकांक्षा उसे निरंतर अदृश्य अवनति, रोग अशांति, असंतोष के पथ पर ले जा रही है।  पर्यावरण का प्रभाव प्रत्येक प्राणी के जन्म से पूर्व मां के गर्भ में है उसे प्रभावित करने लगता है। जिस धरती के पर्यावरण के सौंदर्य , संपन्नता एवं स्वच्छता की ओर विदेशी लोग आकर्षित होते चले आए वही भारतभूमि  प्रदूषण का शिकार होती चली जा रही है।

यह समस्या केवल कुछ देशों की नहीं यह समस्या समूचे विश्व की समस्या है।  बढ़ते हुए उद्योग जहां एक ओर  भौतिक सुख संपदा जुटा रहे हैं वहीं दूसरी ओर धरती को प्रदूषित कर रहे हैं| विकसित देश औद्योगिक अपशिष्ट के द्वारा पर्यावरण को अत्यधिक हानि पहुंचा रहे हैं। वे विकासशील देशों को न तो उच्च प्रौद्योगिकी देने को राजी हैं जिससे पर्यावरण कम प्रदूषित हो और ना ही पर्यावरण प्रदूषित करने हेतु लाभांश का कुछ प्रतिशत धन पर्यावरण सुधार एवं कल्याण कार्यक्रमों हेतु देने को तैयार हैं।  संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में ब्राजील तथा जोहांसबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला|

प्रदूषण के प्रकार

यह प्रदूषण कई प्रकार के हैं किंतु आधुनिक सभ्यता में रचा बसा यह प्रदूषण नहीं आज की आवश्यकता लगता है।  मुख्यतः तीन प्रकार के प्रदूषण का जिक्र किया जाता है – वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण।

  • वायु प्रदूषण मशीनी सभ्यता ने मनुष्य को सुविधा के लिए अनेक प्रकार के वाहन उपलब्ध करा दिए हैं इन वाहनों की कृपा से समय भी बचता है और गौरव भी बढ़ता है। वाहनों ने भौतिक दूरियों को निश्चय ही कम कर दिया है किंतु बढ़ते वाहनों की होड़ ने स्वच्छ शीतल बयार को प्रदूषित वायु में बदल दिया है। ऐसा लगता है चारों और धुएं के बादल मंडरा रहे हैं।  आज संसार भर के वैज्ञानिकों के सामने यह चुनौती है कि वह किस प्रकार मानव जाति को इस शस्य श्यामला धरती को धुंए से निजात दिलवाए।  एयर कंडीशनर जनरेटर फैक्ट्रियां वाहन इन सब से वायु का प्रदूषण निरंतर बढ़ता चला जा रहा है।  महानगरों की दशा तो और भी दयनीय है हरे-भरे वृक्षों के स्थान पर ऊँची ऊँची इमारतें और इमारतों के अंदर सुंदर वातानुकूलित घर वहां रहने वाले लोगों को जरूर सुख देते हैं किन्तु यही एयरकंडीशनर बाहर की वायु को प्रदूषित करते हैं।  बढ़ती जनसंख्या भी इस विवशता का एक बहुत बड़ा कारण है।
  • जल प्रदूषण कारखानों से निकला दूषित जल नदियों के जल को विशैला बनाता जा रहा है। चौड़े चौड़े पाटो वाली नदियां सिमटकर छोटी होती जा रही है।  महानगरों के आसपास की नदियों  की तो इतनी दुर्दशा है कि नदी ढूंढनी पड़ती है।  यत्र तत्र जो जल दिखाई देते जाता है वह भी काला और गंदगी से भरा हुआ।  पहले जल गन्दा किया जाता है फिर उसे साफ करने के लिए नए-नए उपाय तलाश किए जाते हैं।  उपाय भी निर्धनों की पहुंच से बाहर होते हैं अतः वे नित्य प्रति भयंकर रोगों के शिकार होते रहते हैं । जल प्रदूषण से केवल जल ही हानिकारक नहीं होता अपितु फसलें भी प्रभावित होती हैं परिणामतः अन्न और जल दोनों और जल दोनों का प्रदूषण धरती के प्रत्येक जीव को हानि पहुंचाता है, नष्ट करता है।  जल प्रदूषित ना हो यह जागरूकता मानव मात्र में होनी आवश्यक है परीक्षण के नाम पर विश्व के कोने-कोने में होने वाले विस्फोट भी प्रदूषण का एक कारण है। घरों में भूमिगत सीवरों का गंदा जल भी नदियों में गिराया जाता है जिससे जल प्रदूषित,  विषाक्त एवं ऑक्सीजन रहित हो जाता है ऐसे जल के सिंचन से होने वाली सब्जियां फल आदि भला कैसे पोषक हो सकते हैं।
  • ध्वनि प्रदूषण विज्ञान का क्रमिक विकास जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। वातावरण में अब आवाज बहुत है।  पहले हवा के झोंकों से डोलते पत्तों की खड़खड़ाहट सुनाई पड़ती थी।  चिड़ियों की चहचहाहट कानों में सुनाई पड़ती थी।  जल की कल कल की  ध्वनि भावों को तरंगित करती थी।   जब भी कभी नृत्य संगीत की महफिल सजती थी तो वहां भी मन और आत्मा को शांति एवं आनंद देने वाले स्वर लहरी गुजरती थी।  विज्ञान के चमत्कार ने रेडियो, दूरदर्शन,  सीडी प्लेयर आदि का रूप लेकर जीवन को रौनक एवं जागरूकता तो दे दी है मगर उससे अधिक तेज आवाज का अभिशाप भी दिया है।  वाहनों का शोर , डी जे का शोर मशीनों का शोर और इस शोर से मुकाबला करते हुए मनुष्य की ऊँचे स्वरों में बोलचाल का शोर वातावरण को शोर ही शोर से भर देता है। मनुष्य शायद बेखबर है कि यह ध्वनि प्रदूषण कितना घातक है।  तनाव और उत्तेजना को बढ़ाता है साथ ही बच्चों में बहरेपन का भी एक बड़ा कारण बनता है।

उपसंहार

इतनी तेजी से बढ़ते हुए इस प्रदूषण के लिए यही सोचना अनिवार्य है कि पेड़ काटे तो पेड़ लगाएं भी , दूषित जल के निष्कासन के उचित उपाय खोजे सादा जीवन उच्च विचार की वास्तविकता को समझे एवं अपनाएं तो निश्चय ही किसी हद तक इस तरह फैलते प्रदूषण का ग्रास बनने से बच पाएंगे तथा अपने पर्यावरण को ज्यादा नुकसान होने से बचा सकेंगे।