भारत अनेक धर्म , भाषा एवं जातियों का देश है| भारत के विशेषता है -‘अनेकता में एकता की भावना’। जब कभी इस को खंडित करने का प्रयास किया जाता है तो भारत का प्रत्येक नागरिक सजग हो उठता है तथा इस प्रकार राष्ट्रीय एकता को खंडित करने वाली शक्तियों के विरुद्ध संपूर्ण देश में आंदोलन प्रारंभ हो जाता है| राष्ट्रीय एकता हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है।
राष्ट्रीय एकता दिवस – Long and Short Rashtriya Ekta Diwas Par Nibandh
वस्तुतः राष्ट्रीय एकता हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है और जिस व्यक्ति को अपने राष्ट्रीय गौरव का अनुमान नहीं है वह मनुष्य नहीं वरन पशु के समान है। राष्ट्रीय एकता अर्थात संपूर्ण भारत की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और वैचारिक एकता। हमारे कर्मकांड पूजा-पाठ खान पान रहन सहन और वेशभूषा में अंतर हो सकता है किंतु हमारे राजनीतिक और वैचारिक दृष्टिकोण में प्रत्येक दृष्टि से एकता की भावना दृष्टिगोचर होती है। इस प्रकार अनेकता में एकता ही भारत की प्रमुख विशेषता है।
राष्ट्रीय एकता दिवस का आरम्भ
प्रत्येक वर्ष 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है| भारत सरकार द्वारा सन 2014 में इस दिवस का आरम्भ किया गया था .सरदार पटेल ने देश को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी| 31 अक्टूबर सन 1975 को करमचंद गुजरात में जन्मे सरदार वल्लभभाई पटेल को भारत के ‘लौह पुरुष’ के रूप में जाना जाता है|
कानून की पढ़ाई पढ़ने के साथ-साथ उन्होंने कानून का अभ्यास भी सफलतापूर्वक किया था किंतु कुछ समय बाद उसे छोड़कर वह देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गाँधी के नेतृत्व में किये जाने वाले भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सम्मिलित हो गए।सरदार पटेल ने भारत की स्वतंत्रता के लिए आरम्भ किये गए स्वतंत्रता संग्राम में गांधीवादी सिद्धांतों के तथा भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान किसानों के द्वारा किये जाने वाले आंदोलन के आयोजन में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी|
भारत देश में उनका एक सबसे बड़ा योगदान सन 1947 -1949 के दौरान भारत के 500 से अधिक रियासतों के एकीकरण में उनके द्वारा निभाई गई उनकी भूमिका थी| 15 दिसंबर 1950 को हुई उनकी मृत्यु के लगभग 41 साल बाद सन 1991 में उन्हें भारत रत्न तथा भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया था। उनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मना कर हमारे समाज में इस एकजुटता के लिए उनके द्वारा किये जाने वाले प्रयासों के लिए जागरूकता को बढ़ाते है।
भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल की 143 वीं वर्षगांठ पर गुजरात में स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी का उद्घाटन किया. यह विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है। इसकी ऊंचाई 182 मीटर (597 फीट) है तथा इसका निर्माण केवड़िया कॉलोनी में नर्मदा नदी पर स्थित सरदार सरोवर बांध के सामने हुआ है।
राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता
किसी भी राष्ट्र की आंतरिक शांति, सुव्यवस्था एवं बाहरी शत्रुओं से सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता अति आवश्यक है। यदि हम देशवासी किसी कारणवश अलग हुए तो हमारी पारस्परिक फूट का लाभ उठाकर अन्य देश हमारी स्वतंत्रता को हड़पने का प्रयास करेंगे।
अखिल भारतीय राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में बोलते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा था ” जब जब भी हम असंगठित हुए, हमें आर्थिक और राजनीतिक रूप में इसकी कीमत चुकानी पड़ी। जब जब भी विचारों में संकीर्णता आई आपस में झगड़े हुए। जब कभी भी नए विचारों से अपना मुख मोड़ा हानि ही हुई। और हम विदेशी शासन के अधीन हो गए। ”
राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएं : कारण और निवारण
राष्ट्रीय एकता की भावना का अर्थ मात्र यही नहीं है कि हम राष्ट्र से संबंध है राष्ट्रीय एकता के लिए एक दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना भी आवश्यक है। स्वतंत्रता प्राप्त करने के पश्चात ऐसी उम्मीद की गयी कि अब पारस्परिक भेदभाव की समस्या समाप्त हो जाएगी , किंतु सांप्रदायिकता क्षेत्रवाद, जातिवाद , अज्ञान और भाषागत अनेकता ने अब तक भी पूरे देश को अपने वश में कर रखा है।
राष्ट्रीय एकता को तोड़ने वाले कारकों को जानना अति आवश्यक है, जिससे उनको दूर करने का प्रयास किया जा सके। कुछ प्रमुख कारण और उनका निवारण इस प्रकार हो सकते हैं |
सांप्रदायिकता – राष्ट्रीय एकता के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट है सांप्रदायिकता की भावना । ये एक ऐसी बुराई है जो मानव – मानव में फूट डालती है । दोस्तों के बीच घृणा और भेद की दीवार खड़ी करती है,
भाई को भाई से अलग करती है और अंत में समाज के टुकड़े कर देती है। दुर्भाग्य से इस रोग को समाप्त करने के लिए जितना अधिक प्रयास किया गया है यह रोग उतना ही बढ़ता गया है। स्वार्थ में लिप्त राजनीतिज्ञ संप्रदाय के नाम पर भोले भाले लोगों की भावनाओं को भड़का कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे रहे रहते हैं। परिणामतः देश का वातावरण विषाक्त होता जा रहा है|
यदि राष्ट्र को एक सूत्र में बांधे रखना है तो सांप्रदायिक विद्वेष, स्पर्धा, ईर्ष्या आदि राष्ट्र विरोधी भावों को अपने मन से दूर रखना होगा और देश में सांप्रदायिक सद्भाव जागृत करना होगा|
भाषागत विवाद– भारत बहुभाषी राष्ट्र है। देश के विभिन्न प्रांतों के अलग-अलग बोलियां और भाषाएं हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा और उस भाषा पर आधारित साहित्य को ही श्रेष्ठ मानता है। इस कारण से भाषा पर आधारित अनेक विवाद खड़े हो जाते हैं तथा देश की अखंडता भंग होने का खतरा बढ़ जाता हैं।
जब भी कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा के मोह के कारण दूसरी भाषा का अपमान या उसकी अवहेलना करता है तो वह राष्ट्रीय एकता पर प्रहार ही करता है। होना तो यह चाहिए कि अपने मातृ भाषा को सीखने के बाद हम संविधान में स्वीकृत अन्य प्रादेशिक भाषाओं को भी सीखें तथा राष्ट्रीय एकता की भावना के विकास में सहयोग प्रदान करे।
प्रांतीय या प्रादेशिकता की भावना – यह भावना भी राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है। राष्ट्र एक संपूर्ण इकाई है। कभी-कभी यदि किसी अंचल विशेष के निवासी अपने पृथक अस्तित्व की मांग करते हैं तो राष्ट्रीयता की परिभाषा को सही रूप में ना समझने के कारण ही वे ऐसा करते हैं। इस प्रकार की मांग करने से राष्ट्रीय एकता और अखंडता का विचार ही समाप्त हो जाता है।
भारत के सभी प्रांत राष्ट्रीयता के सूत्र में आबद्ध है उनमें अलगाव संभव नहीं है। राष्ट्रीय एकता के इस प्रमुख तत्व को प्रत्येक नागरिक को अपने दृष्टि से ओझल नहीं होने देना चाहिए।
राष्ट्रीय एकता की दिशा में हमारे प्रयास
हमारे देश के विचारक, साहित्यकार, दार्शनिक एवं समाज सुधारक अपने – अपने जीवन में निरंतर इस बात के लिए प्रयत्नशील हैं कि देश में भाईचारे और सद्भावना का वातावरण बने, अलगाव की भावनाएं, पारस्परिक तनाव और विद्वेष की दीवारें समाप्त हो। फिर भी इस आग में कभी पंजाब पड़ता है कभी बिहार कभी महाराष्ट्र कभी गुजरात तो कभी उत्तर प्रदेश।
अप्रिय घटनाओं की पुनरावृत्ति हमें इस बात का संकेत देती है कि हम टकराव और बिखराव पैदा करने वाले तत्वों को रोक पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। इन समस्याओं का समाधान केवल राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के स्तर पर नहीं हो सकता इसके लिए हम सबको मिलजुल कर प्रयास करने होंगे।
उपसंहार
प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय एकता दिवस को मनाने के साथ साथ हमे यह समझना होगा कि राष्ट्रीय एकता की भावना बस इस दिवस को मना लेने से नहीं अपितु इस श्रेष्ठ भावना के प्रति जागरूकता को बढ़ाने हेतु हम सब को स्वयं को बदलना होगा।
मनुष्यों में फैली असमानता की भावना ही संसार में व्याप्त समस्त विद्वेष एवं विवाद का कारण है। अतः जब तक प्रत्येक व्यक्ति में मानवता की भावना का विकास नहीं होगा तब तक विभिन्न उपदेशों, भाषणों एवं राष्ट्रीय गीत के माध्यम से ही राष्ट्रीय एकता का भाव उत्पन्न नहीं हो सकता। इन्ही सब प्रयासों से ही राष्ट्रीय एकता दिवस को मनाने का उद्देश्य भी पूर्ण हो सकेगा।