योग के महत्व पर निबंध – Essay On Yog Ka Mahatva in Hindi

साँझ सवेरे रोज करे योग ,

निकट न भटके कोई रोग।

योग के महत्व पर निबंध – Long and Short Essay On Yog Ka Mahatva in Hindi

योग शब्द का महत्व जानने से पहले अहम उसके अर्थ का ज्ञान होना चाहिये।  कुछ विद्वानों ने इसे तपस्या , कुछ ने इसे समाधि तो कुछ ने इन्द्रियों को वश में करने की कला कहा है।  पढिनि के अनुसार योग शब्द की उत्पति “युजर योगे ” , “युज समाधो ” वयुज़ सयमने ” धातुओं से हुई है।  उनके अनुसार योग का अर्थ जीवात्मा और परमात्मा का मिलान है।

और इसी मिलन को समाधि की संज्ञा दे जाती है।  महृषि पतंजलि ने भी इसे समाधि की ही संज्ञा दे है और इसके साथ साथ व्यास जे ने भी इसे यही उपाधि दे है। संस्कृत भाषा क आधार पर योग के कई अर्थ है जो इस प्रकार है :-

महर्षि यज्ञवल्क्य ने योग के बारे में कहा है योग एक तरह का संयोग है।  दूसरे शब्दों में जीवात्मा और आत्मा के संयोग को ही योग कहा जाता है।

कठोपनिषद में कहा गया है यदा पांचवतेष्ठनते ज्ञानानी मनसा सह। अथार्त जब हमारे पंच तत्व जिनसे हमारा शरीर बना है स्थिर हो जाते है या दूसरे शब्दों में जब हमारी इंन्द्रिया मन के साथ तालमेल कर उसी के साथ स्थिर हो जाती है तो वह योग की स्थिति है।

इसी प्रकार गीता में भी श्री कृष्णा से यही उपदेश दिया है सब लोभ , मोह , अहकार से दूर रहकर सिर्फ कर्म करना और फल की इच्छा न करना ही योग है।

योग का महत्व

वर्तमान में केवल भारत में ही नहीं बल्कि बहार के देशो में भी योग का बहुत महत्व मन जाता है। अनेक शोधो पर शोध करके वैज्ञानिको  ने स्वयं कहा है,  योग से ही अनेक मानसिक बीमारियों का इलाज संभव है।

योग से शारारिक और मानसिक दोनों विकास होते है और अनेक रोगो से छुटकारा मिलता है। योगासन करने से हमरे अंदर के नाकरारत्मक विचार समाप्त हो जाते है और सकरातमक विचारधरा मन में उत्पन्न होते है। योग का हर क्षेत्र में अपना ही महत्व है जो इस प्रकार है :-

स्वास्थय के क्षेत्र में

आजकल के कलयुग में जहाँ कोई भी वस्तु प्योर नही मिलती वहाँ योग का महटाव और भी बढ़ जाता है।  दूसरा आजकल का जीवन बहुत ही विलासमय  और भौतिक युग में इसका महत्व  दिन प्रतिदिन बढ़ता  जा रहा है।

योग के कारण मानसिक विकार समाप्त होते है और हमारा मन अपार आनंद का अनुभव करता है जिसके कारण हमारे मन के साथ साथ हमारा  निर्मल हो जाता है। योग शरीर के अंदर विधमान विषैले पदार्थो को बहार निकाल कर शरीर को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखता है।

स्वस्थ जीवन का राज है योग ,

जीवन जीने का अंदाज है योग।

काहे जरुरत पड़े फिर स्वास्थय बीमा ,

जब योग दे रहा मुफ्त में तुम्हे सेवा और मेवा।

सिर्फ बहाना होगा तुमको थोड़ा पसीना।

प्रातः कल का समय लाएगा जीवन में आनंद ,

और होगा आपके हाथो में सेहत का राज बंद।

खेलकूद के क्षेत्र में

खेल कूद के क्षेत्र में भी योग का महत्वूर्ण स्थान है।  अपने कुशलता योग्यता बढ़ाने के लिए खिलाडी योगाभ्यास करते है तथा खोई हुए ऊर्जा को फिर से ग्रहण करते है।  इसके कारण खिलाड़ियों में सदभावना , सहनशीलता , कुशलता , एकाग्रता और अपने खेल के लिए भी सम्मान की भावना आती है।

रोगो के उपचार में महत्व

आज के विलासतापूर्ण जीवन में रोगो की भरमार बढ़ती चली जा रही है।  छोटो से लेकर बड़ो को थकान , सिरदर्द , जोड़ो में दर्द होने लगे है जिसके कारण वे दिन प्रतिदिन के कार्यो को करने में भी स्वयं को असमर्थ महसूस करते है। इसका एकमात्र उपाय योग है।

योग करने से न केवल आपका मन एकाग्रता को ग्रहण करेगा बल्कि आपका शरीर अनेक बीमारियों से निज़ात पा लेगा और इसके साथ आपको थकन भी काम अनुभव होगी।

भौतिक और लौकिक जीवन में महत्व

योग के कारण हमारे भीतर मन में सकारात्मक विचारधारा का संग्रहण होना आरम्भ हो जाता है जिसके कारण हमारा मन प्रसन्न रहने लगता है और हम हर तरफ चारो और ख़ुशी को महसूस करते है और हमारे अंदर की आधी बीमारी स्वयं ही ख़तम हो जाती है।  इसका कारण हमारा आँतरिक मन स्वस्थ महसूस करता  है.

और हमें किसी तरह का कष्ट का अनुभव नहीं होता।  विपतियाँ तो जीवन का उतार चढ़ाव है जो आएंगी  और चली जाएंगी परन्तु यदि हम योग का अभयास करते है है तो कोई भी परिस्थति हमें विचलित  नही कर सकती।   कहने का अभिप्रायः यह है  यदि हमने योग की विधा को भली भांति समझ लिया है तो मानसिक बीमारियो के साथ साथ हमारा लौकिक जीवन भी अत्यंत अच्छे से व्यतीत होता है.

और हम लौकिक जीवन आने वाले हर बाधा का सामना करने में समर्थ होते है। योग के कारण हमारे अंदर आत्मीयता का संचार होता है और और हम हर किसी के साथ एक आत्मिक प्रेम रखते है और लौकिक जीवन में बने हुए सम्बन्धो को भी बहुत अच्छे से निभाने में सक्षम होते है।

आर्थिक पक्ष

जैसे योग हमरे  लौकिक जीवन को   सुखद  करता है और उसी जीवन को  बेहतर   बनाने  लिए योग हमें आर्थिक रूप से भी सक्षम होने में मदद करता है।  कहते है पहला सुख निरोगी काया , जिससे आये धन और माया।

अथार्त यदि हम शारीरिक रूप से स्वस्थ है तो हम अपने आर्थिक जीवन को और सुगम बना सकते है और  भौतिक सुविधाओं का हर लाभ उठा सकते है। इस तरह योग हमें आर्थिक रूप से सक्षम करता है और हम एक सफल जीवन जीते है।

आध्यात्मिक क्षेत्र

प्राचीन समय में हमारे ऋषि मुनि और पूर्वज योग साधना किया करते थे जिन्हे तपस्या या समाधि कहा जाता था।  यदि हम किसी भी देवता की मूर्ति को ध्यानपूर्वक देखे तो उनके मुख पर एके अनोखा सुख और मुस्कान की अनुभूति होती है जिसका एकमात्र कारण उनके द्वारा की गई योग साधना जिसे वे बहुत ही लगन और भौतिक सुख को भूलकर करते थे।  यदि हम आध्यात्मिक क्षेत्र की बात करे तो आत्मा का परमात्मा से मिलान ही योग है जिसे अंग्रजी भाषा में मैडिटेशन कहा जाता है।

योग से हमारे मुख पर एक दिव्ये प्रकाश छलकता है जिससे न केवल हम प्रसन्न चित दिखते है बल्कि हमारे मुख की आभा देखकर दुसरो के चहेरे भी खिल जाते है और वो भी अपने जीवन की आधी परेशानियों से मुक्त हो जाते है।  कहते है हस्ता हुआ चेहरा और प्रसनचित मुख हर किसी को लुभाता है , चाहे आपका रंग कैसा भी हो सफ़ेद , काला , गेहुआ या कोई भी पर यदि आपके मुख पर मुस्कान है तो आप अपने आस पास एक सकारात्मक वातावरण बना लेते है.

और इससे आपके साथ काम करने वाले भी सकरात्मक व्यव्हार करने के लिए प्रेरित होते है।  योगउपनिषद में भी कहा गया है – योगतपरंतरपुण्यं यगात्परतरं शित्रम अथार्त योग के समान कोई शक्ति नहीं और योग से बढ़कर भी कुछ नहीं।  योग एक ऐसा आश्रम है जिसमे हर कोई सुख की अनुभूति करता है।

निष्कर्ष

प्रचीन काल का योग बहुत ही कठिन मन जाता था जिसके अंतर्गत योग साधना करने वाले व्यक्ति को अपने व्यावहारिक जीवन को त्याग कर कही जंगलो में जाकर एकांत स्थान पर साधना करनी पड़ती थे और उसे वन में रह कर ही अपने मानवीय जीवन को जीना पड़ता था जिसके कारण योग विद्या धीरे धीरे ख़तम हो गई।

योग साधना के लुप्त होने का कारण मानव अपने व्यावहारिक जीवन का लोभ छोड़ने में खुद को असमर्थ महसूस करता था और उसे मानसिक पीड़ा होते थी।  परन्तु आज के योग में मानव को अपने व्यावहारिक जीवन का त्याग किये बिना योग साधना की शिक्षा दी जाती है जिसके कारण वह स्वयं के साथ -साथ दुसरो का भी कल्याण करता है।