गरीबी पर निबंध – Essay On Poverty in Hindi

भारत एक बहुत ही बड़ा देश है। इसे बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में ही भारत की एक सामाजिक समस्या है “गरीबी”। गरीबी को हम निर्धनता के नाम से भी जानते हैं। गरीबी किसी एक वर्ग के लोगों की समस्या नहीं है बल्कि सभी वर्गों की समस्या। किसी इंसान या व्यक्ति का अधिक निर्धन होना गरीबी कहलाता है।

गरीबी पर निबंध – Long and Short Essay On Poverty in Hindi

गरीबी को खत्म करने का प्रयास विश्व भर में चल रहा है। लेकिन खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। गरीबी एक सामाजिक आर्थिक स्थिति है। समाज उस व्यक्ति को महत्व नहीं देता जो गरीब होता है समाज का उस व्यक्ति के प्रति व्यवहार बड़ी अनियमितता का होता है इसलिए इसे सामाजिक समस्या भी कहा गया है। प्रो. अमर्त्य सेन के अनुसार “गरीबी क्षमताओं का अभाव” है। विश्व बैंक के अनुसार जिस व्यक्ति की प्रतिदिन आए 1.90 डॉलर से कम है वह गरीब है। गरीबी को कई तरह से परिभाषित करने का प्रयास किया गया है।

गरीबी भारत की एक सामाजिक समस्या है। इसके अंतर्गत समाज का कोई भी वर्ग अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता है या पूरा करने से वंचित रह जाता है “गरीबी” कहलाती है। भारत में निर्धनता इनकम के आधार पर नहीं तय की जाती बल्कि व्यय के आधार पर तय की जाती है।

आसान शब्दों में कहें तो अगर किसी व्यक्ति के पास पैसे हैं लेकिन फिर भी वह किसी कारणवश अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रहा है तो ऐसी स्थिति को भारत में गरीबी कहा जाता है। पहले मूलभूत आवश्यकताओं में केवल रोटी कपड़ा मकान माना जाता था लेकिन 21वीं शताब्दी में मूलभूत आवश्यकताओं में शिक्षा और जीवन यापन के तरीके भी शामिल किए गए।

रेगनर नर्कसे ने कहा था “कोई व्यक्ति गरीब है क्योंकि वह गरीब है”। इसका मतलब है गरीब एक ऐसा चक्र का दलदल है। जिसमें व्यक्ति फसता ही चला जाता है। और इससे बाहर निकलने के लिए भयानक बल की आवश्यकता होती है।

अगर कोई व्यक्ति गरीब है तो वह अपने बचपन को अवश्य गरीबी में विजिट किया होगा जिसकी वजह से ना उसे अच्छी शिक्षा मिल पाई होगी ना अच्छा पोषण मिल पाया होगा और ना ही अच्छा पर्यावरण मिल पाया होगा इसीलिए उसका वर्तमान भी गरीबी में जूझ रहा है। गरीबी का तात्पर्य पेट भरने से नहीं है। यह कैसा दलदल है जिससे निकालना इतना आसान नहीं है। व्यक्ति जितना इसे निकालने की कोशिश करता है उतना ही ज्यादा इसमें फसता चला जाता है।

भारत में गरीबी निर्धारण का इतिहास

  • १- सबसे पहले 1878 में दादा भाई नौरोजी ने गरीबी का एक पैमाना तैयार किया था कि जो व्यक्ति प्रतिवर्ष 16 से ₹35 कमाता नहीं है वह गरीब है। यह गरीबी पर उठाया गया सबसे बड़ा पहला कदम था।
  • 2-  1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में योजना समिति में सुभाष चंद्र बोस द्वारा “पोषण के आधार पर गरीबी रेखा का निर्धारण किया गया”।
  • 3- 1944 में बाॅम्बे प्लान का गठन हुआ और इसके अंतर्गत यह कहा गया जो व्यक्ति साल का ₹75 ना कम आता है वह गरीब होगा।
  • 4- 1962 में आजादी के बाद एक समूह का गठन हुआ जिसे योजना आयोग विशेष समूह कहा गया। इसके अंतर्गत यह तय किया गया कि ग्रामीण क्षेत्र में जो व्यक्ति ₹20 प्रति वर्ष और शहरी क्षेत्र में ₹25 प्रतिवर्ष जो व्यक्ति ना कमान सके वह गरीबी रेखा में आएगा।
  • 5- वी. एम. और एन. रथ फार्मूला नामक वैज्ञानिक तरीके से 1971 में नेशनल सैंपल सर्वे द्वारा 1960 -61 के उपभोग खर्च के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया। जिसके अंतर्गत कहा गया गरीबी रेखा का निर्धारण उतनी धनराशि होनी चाहिए जितनी राशि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में प्रतिवर्ष 2250 कैलोरी प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। इस प्रकार पहली बार व्यय आधारित फार्मूला गरीबी को निर्धारण करने के लिए बनाया गया।

गरीबी के प्रकार

गरीबी दो प्रकार की होती है जो निम्न है।

1- सापेक्ष गरीबी

उच्च स्तर के व्यक्तियों द्वारा जो इनकम कमाए जा रही है उस इनकम का बंटवारा निम्न स्तर के व्यक्तियों में किस प्रकार से किया जा रहा है इस बात का मापन करने वाले विधि को सापेक्ष गरीबी कहा जाता है।

  • सापेक्ष निर्धनता आएगी समानता या असमानता को दर्शाती है।
  • सापेक्ष निर्धनता का मापन विकसित देशों में किया जाता है।
  • जनता का निर्धारण लॉरेंज वक्र विधि और गिनी गुणांक विधि द्वारा किया जाता है।

2- निरपेक्ष गरीबी

निरपेक्ष गरीबी में कोई तुलना नहीं की जाती है। प्रत्येक व्यक्ति के आधार पर किसका मापन किया जाता है। निरपेक्ष गरीबी का निर्धारण कैलोरी के आधार पर या उपभोग खर्च के आधार पर किया जा सकता है। भारत में गरीबी निरपेक्ष गरीबी है। विकासशील देशों में गरीबी का मापन निरपेक्ष रूप से किया जाता है।

निष्कर्ष

गरीबी हमारे देश की एक बहुत बड़ी समस्या है। इसको दूर करने के लिए हालांकि सरकार ने कई सारी योजनाएं बनाई हैं। किसी का पेट भरना गरीबी दूर करना नहीं है। हम उस इंसान को गरीब समझते हैं जो खाने के लिए नहीं पाता।

और हम उसे खाना खिला कर ऐसा सोचते हैं कि हमने उसकी गरीबी दूर कर दी। लेकिन ऐसा नहीं है गरीबी हमारे देश की एक बहुत बड़ी समस्या है। और इस गरीबी से हम सब कहीं ना कहीं जूझ रहे हैं। हम सब को हर संभव सरकार की योजनाओं का पालन करना चाहिए और यह कोशिश करनी चाहिए कि हम भी इस समस्या को दूर करने में सरकार की मदद करें और अपनी भी।